कला और समाज सेवा ने दीवांशी को दी अलग पहचान

नरेंद्र सेठी/अविकल उत्त्तराखण्ड


कहते हैं कि प्रतिभा किसी सहारे की मोहताज नहीं होती। प्रतिभावान व्यक्ति अपनी प्रतिभा को प्रकट करने के लिए हर पल आतुर रहता है और ऐसा ही कुछ कर दिखाया देहरादून की बेटी दीवांशी सैनी ने, जिसमें कला के साथ-साथ समाजसेवा की भावना भी कूट-कूट कर भरी हुई है।

महज 20 वर्ष की उम्र में जब अमूमन आज की आधुनिक पीढ़ी के अधिकांश बच्चे 21वीं सदी की चकाचौंध के चलते अपने परिवार और संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं, ऐसे में दीवांशी अपनी मां वंदना सैनी के साथ एक बेटे की तरह मजबूत दीवार बनकर खड़ी है।


फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा करने के बाद सपना तो दीवांशी का अपना एक एक्सपोर्ट हाउस खोलने का है, लेकिन चित्रकला पेंटिंग से उसको ऐसा अगाध प्रेम है की मात्र 6 माह के भीतर ही दीवांशी ने भगवान श्रीनाथजी, कृष्ण भगवान, तिरुपति बालाजी सहित अनेक धार्मिक पेंटिंग्स बना डाली हैं। सबसे ज्यादा उत्साहित दीवांशी तब हुई जब उसकी पिछले वर्ष बनाई एक पेंटिंग को एक कला प्रेमी ने ₹ 15,000 में खरीदा था। स्टोन वर्क, लाइट डेकोरेशन, के साथ सरऑक्सी (पत्थर) के इस्तेमाल से मोर पंख लगाकर बनी इस पेंटिंग के बाद दीवांशी में एक अलग सा आत्मविश्वास जागृत हो गया और उसका पेंटिंग्स बनाने का कार्य अविरल जारी है।


22 जुलाई 2001 को जन्मी दीवांशी ने अपने पिता को बचपन में ही खो दिया था लेकिन मां वंदना सैनी की देखरेख और पारिवारिक संस्कारों की बदौलत दीवांशी को एक ऐसी सुदृढ़ परवरिश मिली कि आज उसमें आत्मविश्वास और जीवंतता के साथ साथ समाज में हर चुनौती का सामना करने का जज्बा मौजूद है।
अक्सर देखा गया है कि कलाकार का हृदय मर्म और संवेदनाओं से परिपूर्ण होता है, दीवांशी के साथ भी कुछ ऐसा ही है।

अपनी भावनाओं को कैनवस पर तो दीवांशी अक्सर उतारती ही रहती है लेकिन समाज में असहाय और शोषितों की व्यथा देखकर भी दीवांशी का मन बहुत विचलित हो जाता है। ऐसी गर्भवती महिलाएं जो सरकारी अस्पतालों के बाहर पैसे के अभाव में पर्याप्त भोजन भी नहीं ले पातीं, उनकी मदद के लिए दीवांशी हर संभव सहायता करने के लिए आतुर रहती है।


अपने जीवन में कुछ कर गुजरने के जज्बे ने दीवांशी के मनोबल को इतना मजबूत किया है कि अब वह सिविल सर्विसेज की तैयारी में भी जुट गई है।


दीवांशी का सपना है कि अपने परिवार के साथ खड़े रहते हुए वह समाज के हर उस जरूरतमंद व्यक्ति की बाजू बन जाए जिसे परिस्थितियों ने किन्हीं कारणवश मोहताज कर दिया है।

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