ये मोदी मैजिक नहीं तो और क्या है

भाजपा 47,कांग्रेस 19,बसपा 02,अन्य 02

भाजपा 44.34, कांग्रेस 37.91, बसपा-4.82, सपा 0.29

गढ़वाल मंडल 41 सीट-भाजपा 29,कांग्रेस 08, बसपा 02,अन्य 02

कुमाऊं मंडल- भाजपा 18, कांग्रेस 11

अविकल थपलियाल

देहरादून। उत्त्तराखण्ड ने 2014 से जारी मोदी मैजिक फिल्म का ट्रेलर एक बार फिर देखा। एग्जिट पोल सर्वे के बाद उत्त्तराखण्ड के आकाश पर छाई धुंध 10 मार्च को एक झटके में छंट गयी। उत्त्तराखण्ड की राजनीति में 2014 से शुरू हुआ मोदी मैजिक 2022 में भी छाया रहा। ऊपर से योगी आदित्यनाथ  के तड़के ने भाजपा को 47 सीट देकर इतिहास रचने का मौका दिया।

बेशक भाजपा के सीएम पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए हों लेकिन राज्य गठन के बाद पहली बार उत्त्तराखण्ड की जनता ने सत्तारूढ़ दल को बाहर का रास्ता न दिखाकर गले लगाया। इस जीत की इबारत के मुख्य सूत्रधार पीएम मोदी की चुनावी रैली व भाजपा के संगठित चुनाव प्रचार को जाता है।

इस अहम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के तरकश में महंगाई, रोजगार, भ्र्ष्टाचार, मूलभूत सुविधाओं का अभाव , कोरोनाकाल में स्वास्थ्य सुविधा व तीन- तीन सीएम बदलने जैसे पैने हथियार थे। काँग्रेस ने ये हथियार चलाये भी लेकिन निशाना सही नहीं बैठा।

इन आरोपों पर भाजपा का राष्ट्रवाद व डबल इंजन के विकास का मॉडल भारी पड़ गया। भाजपा मतदाता को यह समझाने में सफल रही कि केंद्र में भाजपा की सरकार की वजह से ही उत्त्तराखण्ड में ऑल वेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना, दिल्ली से उत्त्तराखण्ड को जोड़ने वाले एक्सप्रेसवे समेत लाखों करोड़ की योजनाएं धरती पर दिख रही है।

पीएम मोदी ने उत्त्तराखण्ड में अपनी वर्चुअल व भौतिक सभी जनसभाओं में विकास योजनाओं का खाका खींचते हुए कहा था कि केंद्र सरकार उत्त्तराखण्ड में 1 लाख करोड़ की विकास योजनाएं चला रही है।

भाजपा की जीत में उत्त्तराखण्ड की महिला मतदाताओं का झुकाव भी एक प्रमुख कारक देखा जा रहा है। इस चुनाव में महिला मतदाताओं ने पुरुषों से 5 प्रतिशत अधिक मतदान किया। पर्वतीय इलाके की 34 विधानसभा सीट में 33 सीटों पर महिला मतदाताओं ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। महिला मतदाताओं का मतदान प्रतिशत 67 रहा। जबकि पुरुष मतदाताओं का मतदान प्रतिशत 62 रहा। इस चुनाव में कुल 65.30  मतदाताओं ने वोट किया।

भाजपा ने इस चुनाव में एक दर्जन से अधिक केंद्रीय  नेताओं को उत्त्तराखण्ड में उतार कर कांग्रेस व आम आदमी पार्टी पर विशेष प्रहार करने के अलावा हिंदुत्व की दिशा में ले जाने का विशेष प्रयास किया। और इसमें सफल भी रहे। उत्त्तराखण्ड में मुस्लिम विवि खोले जाने सम्बन्धी कांग्रेस नेता के एक बयान को भाजपा ने खूब भुनाया। और यह संदेश देने में सफल रही कि कांग्रेस देवभूमि में संस्कृत विवि खोलने के बजाय मुस्लिम विवि खोंलने जा रही है।

उत्तर प्रदेश के सीएम योगी ने टिहरी, कोटद्वार समेत अन्य इलाके में आहूत अपनी जनसभाओं में मुस्लिम विवि का मुद्दा उठा मतों का साफ साफ ध्रुवीकरण करने में सफलता हासिल की। योगी ने उत्त्तराखण्ड की जनसभाओं में विपक्ष पर विकास के नाम पर कब्रिस्तान की दीवार बनाने का मुद्दा उठा मतदाताओं को खूब कुरेद गए थे।

हालांकि, कांग्रेस ने तीन तिगाडा काम बिगाड़ा का नारा देकर भाजपा पर तीन तीन सीएम बदलने का आरोप चस्पा कर माहौल बनाने की कोशिश की लेकिन जनता ने इस आरोप पर भी कान नहीं दिए।

भाजपा की जीत के अहम कारकों में आखिरी छह महीने में विवादास्पद देवस्थानम बोर्ड को भंग कर नाराज तीर्थ पुरोहित व ब्राह्मण मतदाताओं को शांत करने की सफल कोशिश की। यही नहीं,तीसरे सीएम के तौर पर पुष्कर सिंह धामी ने कमोबेश सभी आंगनबाड़ी समेत कई अन्य आंदोलित सेक्टर को मानदेय दे नाराजगी दूर करने की कोशिश की।

इसके अलावा आयुष्मान योजना, किसान निधि, कोरोना काल में फ्री राशन की भी भाजपा की जीत में अहम भूमिका देखी जा रही है। आयुष्मान योजना के लाभान्वित लोगों की संख्या व उनके इलाज में राज्य सरकार के हुए करोड़ों खर्च के आंकड़े को भी भाजपा जमकर भुना गई। हालांकि, कांग्रेस ने हरिद्वार महाकुंभ कोरोना घोटाला व आयुष्मान योजना में हुई गड़बड़ी को चुनावी मुद्दा बनाया लेकिन मतदाता इसे अनसुना कर गया।

इससे पूर्व के चुनाव में मंत्रियों के भी हारने के रिकार्ड रहा है। लेकिन इस चुनाव में यतीश्वरानंद को छोड़ सभी मंत्री चुनाव जीत गए। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल, धन सिंह रावत, गणेश जोशी, रेखा आर्य, बंशीधर भगत, अरविंद पांडेय,बिशनसिंह चुफाल चुनाव जीत गए। जबकि सीएम धामी स्वंय चुनाव हार गए। इससे पूर्व 2017 में तत्कालीन सीएम हरीश रावत व 2012 में बीसी खंडूडी भी चुनाव हार गए थे।

भाजपा छोड़ कांग्रेस में गए पूर्व मंत्री यशपाल आर्य बाजपुर से चुनाव जीते। लेकिन ऐन मौके पर कांग्रेस गए हरक सिंह रावत अपनी बहु अनुकृति गुसाईं को लैंसडौन से चुनाव नहीं जितवा पाए। यह हरक सिंह के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

उधर, आखिरी समय पर कांग्रेस से भाजपा में गए किशोर उपाध्याय टिहरी से चुनाव जीत कर नयी पारी की बेहतर शुरुआत कर गए।

कांग्रेस की कलह

बीते पांच साल से गुटों में बंटी कांग्रेस चुनाव के समय भी एकजुट नहीं हो पायी। नये प्रभारी देवेंद्र यादव भी हरीश व प्रीतम गुट के बीच उचित तालमेल नहीं बना पाए। अपने अपनों को टिकट के चक्कर में कई टिकट ऐन मौके पर बदले गए और गलत प्रत्याशी का चुनाव किया गया। यमुनोत्री सीट पर निर्दलीय जीते संजय डोभाल प्रबल कांग्रेसी उम्मीदवार माने जा रहे थे लेकिन आखिरी वक्त पर बिजल्वाण को दे दिया। डोईवाला सीट पर भी पहले मोहित उनियाल को टिकट दिया बाद में काटकर गौरव चौधरी को दिया गया। यही कहानी कुछ और सीटों पर भी दोहरायी गयी। पार्टी नेताओं पर टिकट बेचे जाने का आरोप भी खूब लगा।

चुनावी मौसम के बीच हरीश रावत के कुछ ट्वीट से भी पार्टी के अंदर झगड़ा तेजी से बढ़ा। दिल्ली में तीन दिन तक पंचायत होने के बाद हरीश रावत पहले से अधिक ‘शक्तिमान’  होकर लौटे। यह कहा कि उनकी अगुवाई में ही कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। और चुनाव प्रचार के दौरान ही कांग्रेस के अंदर सीएम कुर्सी को लेकर जंग तेज हो गयी।

हरीश रावत व गोदियाल की हार

कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान के कर्ता धर्ता पूर्व सीएम हरीश रावत की हार भी एक बड़ा झटका मानी जा रही है। हालांकि, हरीश रावत 2017 में भी किच्छा व हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव हार चुके हैं।  आखिरी समय तक विधान सभा सीट तय नहीं कर पाना हार की मुख्य वजह मानी जा रही है।

फिर हार लेकिन बेटी अनुपमा रावत की जीत से बंधी आस

टिकटों की जंग के बीच हरीश रावत ने एकाएक रामनगर सीट पर चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर कर एक नये विवाद को जन्म दे दिया था। उनके नाम की घोषणा भी हो गयी थी। इस सीट पर एक समय उनके ही पुराने साथी रंजीत रावत चुनावी तैयारी कर रहे थे। लिहाजा, हरीश रावत की उम्मीदवारी का रंजीत समर्थकों ने जमकर विरोध किया। नतीजतन, झगड़ा बढ़ने के बाद दिल्ली दरबार में हुए फैसले के बाद रंजीत रावत को सल्ट सीट पर व हरीश रावत को लालकुआं सीट पर शिफ्ट करना पड़ा। और रामनगर में महेन्द्रपाल को उतारा गया। लेकिन हरीश-रंजीत के इस ताजे विवाद के बाद इन सभी सीटों का जायका ही बिगड़ गया। भाजपा ने हरीश रावत की सीट शिफ्ट किये जाने को लेकर बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया। और 10 मार्च को हरीश, रंजीत व महेन्द्रपाल तीनों चुनाव हार गए। इसके अलावा हरीश के प्रबल समर्थक गोंविद कुंजवाल भी जागेश्वर से चुनाव हार गए।

यही नहीं, प्रीतम सिंह को हटवा कर गणेश गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फल भी मीठा नहीं निकला। श्रीनगर विधानसभा से धन सिंह रावत ने गणेश गोदियाल को मामूली अंतर से हरा अपनी सीट बचाई। प्रदेश अध्यक्ष से हटने के बाद प्रीतम व हरीश के बीच तल्खी कई गुना बद्व गयी

बहरहाल, इस हार के बाद हरीश रावत को अब पार्टी के अंदर एक नयी जंग से जूझना होगा। प्रदेश में पार्टी की हार के कारणों में कई बातों पर मंथन करते हुए कई नेताओं की भूमिका पर भी नये सिरे से विचार किया जाएगा।

आप , उक्रांद व बसपा

प्रदेश के प्रमुख क्षेत्रीय दल उत्त्तराखण्ड क्रांति दल के लिए भी यह चुनाव एक डरावने सपने की तरह रहा। इस बार भी उक्रांद एक सीट नहीं जीत पायी। 2017 में भी उक्रांद एक सीट नहीं जीत पायी थी। 2002 में 4 सीट जीतने वाली उक्रांद 2007 में तीन व 2012 में 1 सीट जीती थी। 2022 का चुनाव परिणाम उक्रांद नेताओं के लिए एक नया सबक लेकर आया है। दोनों प्रमुख नेता दिवाकर भट्ट व पुष्पेश पंत चुनाव हार गए।

कोठियाल की जमानत जब्त

पहली बार उत्त्तराखण्ड के चुनाव में शिरकत कर रही आम आदमी पार्टी को करारा झटका लगा।केजरीवाल के मुफ्त बिजली पानी समेत अन्य बड़े बड़े वादे करने के बाद भी एक सीट नहीं जीत पायी। पार्टी के सीएम पद के दावेदार कर्नल कोठियाल की जमानत जब्त हो गई। आप पार्टी पूरी 70 सीटों पर चुनाव लड़ी। लेकिन इसके सभी उम्मीदवार कुछ सैकड़ा व हजार मतों से आगे नहीं बढ़ पाए।

बसपा को संजीवनी

2002 व 2007 के चुनाव में क्रमश 07 व 08 सीट जीतने वाली बसपा 2017 में एक भी सीट नहीं जीत पायी थी। इस बार, बसपा ने हरिद्वार जिले में दो सीट जीत अपनी उम्मीद जिंदा रखी।

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उत्त्तराखण्ड में भाजपा की जीत के बाद नये सीएम पर मंथन शुरू

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