बगवाल खेलने के लिए सिर्फ 45 लोगों को ही मन्दिर परिसर में प्रवेश की अनुमति
रक्षाबंधन के अवसर पर देवीधुरा ( चम्पावत ) में दो टोलियों के बीच पत्थर युद्ध (बगवाल) होता है। बीते साल तक दोनों ओर से कुछ मिनट जमकर बरसात होती थी। इन पत्थरों की चोट से निकले खून को देवी मां का प्रसाद माना जाता था।हजारों की संख्या में इस पाषाण युद्ध को लोग देखने आते थे।
देवीधुरा मंदिर के परिसर में बहुत बड़ा मेला लगता था। उत्तराखंड की यह वर्षों पुरानी परंपरा है। लेकिन इस बार कोरोना के कारण बगवाल में न तो पत्थर चले और न किसी भक्त का खून निकला। बीते कुछ सालों से पत्थर के साथ फल और फूल भी फेंकने का भी चलन बढ़ा है।
वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला ने बताया कि कोरोना संक्रमण के कारण इस बार मेले का आयोजन नहीं किया गया . रक्षा बंधन पर खेले जाने वाले बगवाल को परम्परागत तौर पर काफी कम लोगों की उपस्थिति में सम्पन्न किया गया । पहली बार बगवाल सांकेतिक रूप में केवल पॉच मिनट तक खेली गई।
हालांकि, देवीधुरा में बगवाल से एक दिन पहले होने वाले धार्मिक अनुष्ठान रविवार 2 अगस्त को विधि विधान से सम्पन्न हुए। चारों खाम के मुखियाओं ने मॉ दिगम्बरा शक्ति की पूजा की।
चारों खाम, सातों थोक के प्रतिनिधियों को प्रधान पुजारी धर्मानंद पुजारी ने आशीर्वाद दिया। साथ ही श्रावण शुक्ल पूर्णिमा (रक्षाबंधन) को अपने-अपने घरों में मॉ बाराही का पूजन करने के निर्देश दिए। इसी बीच चौसठ योगिनियों की विशेष पूजा की गई। पूजन में सभी खामों के मुखिया मौजूद रहे।
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