विरासत-2 अगस्त 1845 – इसी दिन रानी लक्ष्मीबाई के वकील जॉन लेंग ने निकाला था मफसिलाईट अखबार

Mafasilite के 175 साल, मेरठ व कलकत्ता से शुरू किया था प्रकाशन

लेंग ने 1858 से मसूरी से प्रकाशित किया था अखबार

मसूरी में ही जॉन लेंग की संदिग्ध मौत हुई थी

ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ा था मुकदमा

जय प्रकाश उत्तराखंडी/इतिहासकार

मसूरी। आज हमारे अखबार MAFASILITE (मफसिलाइट) की स्थापना के 175 साल पूरे हो गये।19 वीं सदी में आस्ट्रेलिया वासी महान अंग्रेज लेखक,रानी लक्ष्मीबाई के बैरिस्टर और संस्थापक संपादक जानलेंग(1816-1864) ने पौने दो सौ साल पहले आज के दिन 2 अगस्त 1845 को Mafasilite का प्रकाशन मेरठ और कलकत्ता से एक साथ शुरु किया।

प्रथम स्वतंंत्रता संग्राम के दिनों में अंग्रेज सरकार की पकड से बचते हुए जान लेंग अखबार लेकर पहले अंबाला गये,वहां से मसूरी आये।लेंग इससे पहले से मसूरी अक्सर आते रहते थे।दिसम्बर1858 से ‘मफसिलाइट’ मसूरी से प्रकाशित होने लगा।तब मफसिलाइट देश और यूरोप में Times of India से ज्यादा पढा जाने वाला अखबार था।1947 में Mafasilite 90 साल छपने के बाद मसूरी में बंद हुआ।

मैंने जान लेंग की ऐतिहासिक विरासत को पाने के लिए 1985 के बाद लगभग 14 साल  शोध व संघर्ष किया।1999 व नाम में गडबड हुई,फिर संशोधन के बाद 2003 से मफसिलाइट का संपादन व प्रकाशन शुरू किया। Mafasilite आज पूरे औज के साथ सतत प्रकाशित हो रहा है।स्वर्णिम दस्तावेज और विरासत को मरते दम तक जिंदा रखने का संघर्ष जारी रहेगा।

पत्रकार लेखक सूरत सिंह रावत ने कुछ साल पहले जॉन लेंग के बारे में विस्तार से लिखा था। उसी के कुछ अंश पेश है-

झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत से मान्यता दिलाने का मुकदमा जॉन लेंग ने ही लड़ा था।

जॉन का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा और उन्होंने यहीं विवाह किया और जीवन बिताया। मेरठ से शुरू किए गए अखबार “मफसिलाइट” को वह अंतिम समय तक मसूरी से भी प्रकाशित करते रहे। 19 दिसंबर 1816 को सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) में जन्मे जॉन के पिता का नाम वाल्टर लेंग और माता का नाम एलिजाबेथ था। उनकी शिक्षा दीक्षा सिडनी कॉलेज में हुई।

1830 में सिडनी विद्रोह में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें देश निकाला दे दिया गया। वह इंग्लैड चले आए और 1837 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से बैरिस्टर की पढ़ाई की। फिर कुछ दिन ऑस्ट्रेलिया में बिताने के बाद वह भारत आ गए।

इतिहासकार जय प्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं कि 1841-1845 के बीच जॉन ने कई गरीब भारतीयों के मुकदमे लड़े। 1845 में मेरठ से मफसिलाइट अखबार का प्रकाशन किया, जिसमें ब्रिटिश राज के अत्याचारों का विरोध किया गया।

उत्तराखंडी ने बताया कि नि:संतान शासकों का राज्य हड़पने के लिए भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी की निगाहें झांसी पर भी टिकी थीं। 1856 में रानी लक्ष्मी बाई ने जॉन लेंग को अपना मुकदमा लड़ने के लिए नियुक्त किया। ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ कलकत्ता हाई कोर्ट में चले इस मुकदमे को लेंग हार गए। गदर की असफलता के बाद 1858 में वह मसूरी (Mussoorie) चले आए और कुलड़ी में द एक्सचेंज बिल्डिंग परिसर में “मफसिलाइट” प्रिंटिंग प्रेस स्थापित कर अखबार निकालने लगे।

उन्होंने जीवन पर्यंत भारतीय जनता की गुलामी व उत्पीड़न के खिलाफ मुहिम चलाई। वर्ष 1861 में उन्होंने मसूरी में ही माग्रेट वैटर से विवाह किया। 20 अगस्त 1864 को 48 साल की अल्पायु में संदेहास्पद परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई। हालांकि उनकी हत्या की रिपोर्ट 22 अगस्त 1864 को मसूरी पुलिस चौकी में लिखाई गई, जिसकी जांच को दबा दिया गया था।

मसूरी में जॉन लेंग की कब्र (1816-1864)

मसूरी की खूबसूरत वादी में कैमिल्स बैंक रोड स्थित कब्रिस्तान में चिरनिंद्रा में लीन बैरिस्टर जॉन लेंग (john lang) ने शायद कभी सोचा भी न होगा कि डेढ़ सौ साल पहले उनसे जुड़ी स्मृतियां उनके वतन ऑस्ट्रेलिया पहुंच सकेंगी। कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Modi) ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट (Tony Abbot?)को जब जॉन लेंग से जुड़ी तस्वीरें भेंट कीं तो वह एकाएक चर्चा में आ गए।

Total Hits/users- 30,52,000

TOTAL PAGEVIEWS- 79,15,245

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *