भाजपा व कांग्रेस नेताओं ने न तो मास्क पहना और न ही सामाजिक दूरी का ही किया पालन
राजनीतिक रैलियों में हो रहा कोविड 19 नियमों का खुला उल्लंघन । लेकिन महामारी एक्ट के तहत कोई एक्शन नहीं
20 अगस्त को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के उत्त्तराखण्ड आगमन पर भी महामारी एक्ट के होगा उल्लंघन
काँग्रेस की परिवर्तन यात्रा सितम्बर में खटीमा से शुरू होगी
बोल चैतू/अविकल थपलियाल
देहरादून। बंगाल समेत कुछ अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव निपटते ही केंद्रीय चुनाव आयोग ने विभिन्न राज्यों में होने वाले लोकसभा व विधानसभा के उपचुनाव स्थगित कर दिये। इस आदेश की मूल वजह कोरोना महामारी से बढ़ते संक्रमण को बताया गया।
कोविड नियमों की हर हफ्ते जारी हो रही SOP में साफ कहा जा रहा है कि किसी भी कार्यक्रम में 50/100 से ज्यादा लोगों को एकत्रित नहीं होना है। विवाह समारोह व अंतिम संस्कार में लोग इस नियम का शिद्दत से पालन भी कर रहे हैं।
लेकिन चुनावी साल में राजनीतिक दलों की रैलियों में कोविड नियमों की खुली धज्जियां उड़ रही है। बावजूद इसके इन दलीय नेताओं पर महामारी एक्ट के तहत कोई भी एक्शन नहीं लिया जा रहा है।
हाल ही में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने देहरादून में रोड शो किया। इस राजनीतिक कार्यक्रम में सैकड़ों आप कार्यकर्ताओं ने शिरकत की। रोड शो के जुलूस में सामाजिक दूरी के नियम का खुलकर उल्लंघन हुआ। लेकिन केजरीवाल के इस शो में नियमों के टूटने के बाद भी एक्शन के नाम पर सरकारी मशीनरी मौन साधे रही।
इसका एक बड़ा कारण यह भी समझ में आता है कि इसी दौरान भाजपा के केंद्रीय कार्यक्रम के तहत पर्यटन व रक्षा राज्यमन्त्री अजय भट्ट भी जनआशीर्वाद यात्रा के तहत उत्त्तराखण्ड के दौरे पर हैं। जगह जगह केंद्रीय राज्यमंत्री का स्वागत हो रहा है। पार्टी कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ रही है। कोविड नियमों को ठेंगे पर रखा हुआ है। हर जगह एकत्रित होने वाली भीड़ से संक्रमण का खतरा कितना बढ़ा। यह भी आने वाले कल में साफ हो जाएगा।
आप व भाजपा के कार्यक्रम में कोविड 19 के नियमों के खुले उल्लंघन के बाद कांग्रेस भी 3 सितम्बर से खटीमा से परिवर्तन यात्रा शुरू करने जा रही है। कांग्रेस के इस प्रस्तावित यात्रा में भी भारी भीड़ उमड़ने की पूरी पूरी संभावनाएं हैं।
इसके अलावा राजनीतिक दलों की चिंतन/मंथन बैठकों में भी नेता-कार्यकर्ता जुट रहे है। हालांकि, पूर्व में हुए कांग्रेस व आप के प्रदर्शनों में पार्टी नेताओं पर मुकदमे दर्ज हुए हैं। लेकिन आप नेता व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल व केंद्रीय राज्यमंत्री अजय भट्ट व पार्टी नेताओं पर कोविड नियमों के उल्लंघन पर कोई मामला दर्ज न होना भी कई सवाल खड़े कर रहा है।
राजनीतिक सरगर्मियों के इस दौर के निकट भविष्य में और भी तेज होने की संभावना है। ऐसे में केंद्रीय चुनाव आयोग के मई के पहले सप्ताह में उपचुनावों पर लगी रोक पर भी सवाल उठ रहे है। आयोग के इस फैसले के बाद उत्त्तराखण्ड के सीएम तीरथ सिंह रावत को असमय जुलाई महीने में कुर्सी छोड़नी पड़ी।
तीरथ रावत को भी 10 सितम्बर से पहले विधानसभा का उपचुनाव लड़ना था। सम्भवतः वह अगस्त माह में ही उपचुनाव लड़ते। और जिस तरह 17 अगस्त को केजरीवाल का रोड शो व केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट की उत्त्तराखण्ड में जन आशीर्वाद यात्रा चल रही है, इसे देखते हुए तीरथ रावत के उपचुनाव भी सम्पन्न कराया जा सकता था। वर्चुअल रैलियों के अलावा अगस्त माह में तीरथ भी उपचुनाव में कूद सकते थे। एक उपचुनाव में प्रचार की अवधि दो सप्ताह तक ही रहती रही है। लेकिन तीरथ के उपचुनाव में कोरोना संक्रमण का हौव्वा खड़ा कर भाजपा ने सीएम ही बदल दिया।
कोविड नियमों के पालन में अपनायी जा रही इस भेदभावपूर्ण नीति के चलते केंद्रीय चुनाव आयोग तो कठघरे में खड़ा ही है। साथ ही सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग भी कम जिम्मेदार नहीं है। भारी भीड़ के साथ विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंक रही भाजपा व आम आदमी पार्टी की रैलियों के आगे कोविड के नियम व केंद्रीय चुनाव आयोग का उपचुनाव स्थगन के फैसले पर भी नये सिरे से सवाल उठने शुरू हो गए हैं। इस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी 20 अगस्त से दो दिवसीय उत्त्तराखण्ड के दौरे पर आ रहे हैं। नड्डा के स्वागत में भी भीड़ उमड़ेगी। कोविड नियमों का फिर उल्लंघन होगा।
ऐसे में तीरथ सिंह रावत के जबरन “बलिदान” की दर्दनाक कहानी से कई चेहरे एक बार फिर कठघरे में खड़े दिखाई दे रहे हैं। कोरोना संक्रमण की आड़ में तीरथ सिंह रावत की “बलि” ले उत्त्तराखण्ड को राजनीतिक अस्थिरता में धकेलने वालों का अपने पूर्व सीएम व छोटी छोटी बात पर चालान भर रही जनता से एक अदद माफी तो बनती ही है…
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