नाटक-माया राम की माया को दर्शकों ने बहुत सराहा


उत्तराखण्ड महापरिषद लखनऊ
रंगमण्डल की प्रस्तुति -’’नाटक-माया राम की माया’’

अविकल उत्तराखंड

लख़नऊ। उत्तराखण्ड महापरिषद के रंमण्डल ने मोहन सिंह बिष्ट सभागार, उत्तराखण्ड महापरिषद भवन कुर्मांचल नगर, लखनऊ में जयवर्द्धन द्वारा लिखित एवं रोजी मिश्रा द्वारा निर्देशित नाटक ‘‘माया राम की माया’’ का मंचन किया किया गया।

कार्यक्रम का उद्घाटन डा0 पूर्णिमा पाण्डेय, पूर्व कुलपति, भारतखण्डे संगीत संस्थान सम विश्वविद्यालय, पूर्व अध्यक्ष, भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ के कर कमलों द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। महापरिषद के अध्यक्ष हरीश चन्द्र पंत एवं संयोजक हेम सिंह एवं दीवान सिंह अधिकारी व डा0 करूणा पाण्डेय, श्रीमती हेमा बिष् एवं श्री भवान सिंह रावत सलाहकार द्वारा मुख्य अतिथि को पुष्पगुच्छ, अंगवस्त्र एवं प्रतीक चिन्ह भेंट किया। मंच संचालन भरत सिंह बिष्ट महासचिव द्वारा किया गया।


हास्य व्यंग्य पर आधारित नाटक ’’मायाराम की माया’’ का शुभारम्भ गोदान के पुण्य को परिलक्षित करते हुए पृथ्वीलोक व स्वर्गलोक की कहानी पर आधारित है। जिसमें मायाराम नाम का व्यक्ति अपने पिता का गोदान करता है और जैसे ही गोदान समाप्त होता है तो गाय माता मर जाती है। जो पुरोहित गोदान कर रहा था वह बहुत क्रोधित हो जाता है और मायाराम को श्राप देता है कि ये चोटि उसी दिन कटेगी जिस दिन मायाराम मरेगा। पूरे इलाके में खराब आग की तरह फैलती है कि मायाराम ने अपने पिता का गोदान मरी गाय से किया है।

यह खबर स्वर्गलोक में पितामह ब्रहमा के पास चली जाती है। ब्रहमा स्वर्गलोक में सभा बुलाते है जिसमें नारद मुनि, यमराज व चित्रगुप्त शामिल होते है। बैठक में यह निर्णय होता है कि क्यो न एक दिन के लिए मायाराम को स्वर्ग में बुलाया जाय। इसके लिए यमलोक के दो दूत जकड़ व पकड़ कर पृथ्वी लोक भेजा जाता है। गलती से ये लोग मायाराम के नौकर सेवकराम को पकड़ लेते है। बहुत मुश्किलों के बाद सेवकराम इनके चंगुल से छूटता है और मायाराम पकड़ में आ जाता है। बहुत मनाने क बाद मायाराम स्वर्ग जाने को तैयार हो जाता है।

मायाराम को पितामह ब्रहमा के दरबार में प्रस्तुत किया जाता है और सवाल जबाव होते है।। देवलोक की माया देख मायाराम प्रफुल्लित होकर उसमें खो जाता है और वही रहने का मन बनाता है। चूंकि मायाराम को एक दिन के लिए ही स्वर्ग लाया गया था तो उसे पृथ्वीलोक भेजने को कहा जाता है। मगर मायाराम जाने को तैयार नहीं होता और अड़ जाता है, मगर पितामह ब्रहमा उसे पृथ्वीलोक भेजने पर अडिग रहते है। सवाल यह है कि क्या मायाराम को पृथ्वीलोक भेज दिया जाता है? या फिर स्वर्ग में ही रहने दिया जाता है। अंध विश्वास के अंधेरे में घिरा समाज तथा व्याप्त सामाजिक बुराइयों से हमे दूर रहने का संदेश देती है ये नाटक।

गौरतलब है कि उत्तराखण्ड महापरिषद लखनऊ के नव निर्मित मोहन सिंह बिष्ट सभागार को कल प्रात 10 बजे पूजा अर्चना कर सभागार को कार्यक्रमों के लिए खोला गया। यह सभागर उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी के सहयोग से बनाया गया है।


मंच पर:- मायाराम-चन्द्रमणि जोशी, ब्रहमा-ऋषभ मिश्रा, यमराज-विजय सिंह बिष्ट, चित्रगुप्त-महेन्द्र सिंह गैलाकोटी, नारद-कामना बिष्ट, सेवकराम-धनलाल वर्मा, प्रपंची-चाची-पुष्पा वैष्णव, दुलारी-हरितिमा पंत, जग्गू-धर्मेन्द सिंह, जकड़-अभय सिंह, पकड़-तरूण सिंह, पंड़ित-शान्तनु
मंच परे – मंच सज्जा-कैलाश सिंह, पूनम कनवाल, मुख्य सज्जा-पुष्पा गैलाकोटी, वेशभूषा, मुदित पंत, मंच सामंग्री-सीएम जोशी, जगदीश सिंह बिष्ट, प्रकाश परिकल्पना-देवाशीष मिश्रा, ध्वनि संचालन-मयंक सिंह राणा, मचं व्यवस्थापक – मंगल सिंह रावत, रमेश सिंह अधिकारी ।


कार्यक्रम में संयोजक दीवान सिंह अधिकारी, रमेश चन्द्र ंिसह अधिकारी, पूरन भदुला, मंगल सिंह रावत, पूरन सिंह जीना, के0एस0 चुफाल, महेश रौतेला, पान सिंह, कैलाश सिंह, जगत सिंह राणा, राजेन्द्र प्रसाद जुयाल, पी एस बिष्ट, सुन्दर पाल सिंह बिष्ट सहित अन्य पदाधिकारीगण एवं सदस्य उपस्थित रहे । महापरिषद के अध्यक्ष हरीश चन्द्र पंत द्वारा संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार, मुख्य अतिथि, कलाकारो, कार्यक्रम में उपस्थिति सभी सम्मानित पदाधिकारी, सदस्यो एवं दर्शकदीर्घा व मीडिया का हृदय से आभार व्यक्त किया गया।

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