गोपाल गोस्वामी, रिटायर्ड आईजी, उत्त्तराखण्ड पुलिस ने उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में ड्यूटी के दौरान के अनुभव को साझा किया। पुलिस अधिकारी 6 दिसम्बर 1992 के दिञ फैजाबाद में तैनात थे । कल्याण सिंह के निधन के बाद आईजी रहे गोपाल गोस्वामी ने कुछ ऐसे बयां किये उस समय के हालात और तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह के उस आदेश का जिसकी वजह से पुलिस बल पर कोई आंच नहीं आयी।
माननीय कल्याण सिंह जी का परलोक गमन अन्य कई समकालीन अधिकारियों की तरह मुझे भी स्तब्ध कर गया..निष्पक्ष, निर्भीक व नियमों का अनुसरण करने वाले राजनेता थे वह ।
वर्ष 1991 में सम्पन्न विधान सभा चुनावों में पहली बार उत्तर प्रदेश में भाoजoपाo की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी। सरकार गठन के बाद उच्च और मझोले स्तर के प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के स्थान्तरण, जैसा कि आमतौर पर होता है, प्रदेश में हुये। तब मैं Dy S P/CO City मुज़फ्फरनगर के रूप में पिछले साढ़े चार वर्षों से तैनात था। भारत वर्ष में तत्समय “अपराधों की राजधानी” के नाम से विख्यात जनपद की इतनी लम्बी नियुक्ति ने मुझे युवावस्था में ही हाइपर टेंशन का रोगी बना दिया। सरकार गठन उपरान्त जिले में भाo किo यूo वालों से हुये एक विवाद को लेकर कुछ पुलिस कर्मियों ने उच्च पुलिस अधिकारियों से दुर्व्यवहार के साथ ही कुछ ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हुई, जिनसे मेरा पहले कभी वास्ता नहीं पड़ा था।
कहते हैं वर्दी वालों को भावुक नहीं होना चाहिये। किन्तु, “जिनेटिक डिफ़ेक्टस” के कारण ही सही, मैं बहुत भावुक हुआ करता था, विशेषतः अपने सहयोगी, मातहत और उच्च अधिकारियों सहित समूचे पुलिस आर्गेनाईजेशन की गरिमा को लेकर (खून ख़राबा, लूटपाट, क़त्ल मुठभेड़ आदि को लेकर कभी नहीं)।
उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद मैं दो-तीन दिन तक घर से बाहर नहीं निकल नहीं पाया। एक दिन मेरे बॉस (नाम नहीं लूँगा) का फ़ोन आया, पूछा क्या बात है ??
मैंने उन्हें बताया कि मैं अब यहाँ काम नहीं कर सकता क्यूँकि घर से निकलते ही पहले चौराहे पर ड्यूटीरत पुलिस कर्मी जब मुझको सैल्यूट करता है तो मुझे लगता है जैसे वह थप्पड़ मार रहा है…
ख़ैर, कुछ दिन बाद DGP मुख्यालय, लखनऊ आकर तत्कालीन DIG (प्रशासन), श्री केo एनo राय, जो एटा जनपद में मेरे गुरु/मेंटोर और उससे भी अधिक पित्रतुल्य अधिकारी हैं, से स्थान्तरण का अनुरोध किया। उन्होंने बताया अभी नहीं, जब तुम्हें पाँच वर्ष पूरे हो जायेंगे, तो तब तुम्हारे तबादले पर विचार होगा। मरता क्या न करता, बेमन वापसी हुयी अपराधों की राजधानी की ओर..
दो-चार महीने बाद तबादला आदेश आया, मुजफ्फरनगर से फैज़ाबाद.. आसमान से गिरे खजूर पर अटके। घर में रोने-धोने के कार्यक्रम को परे रख नौचन्दी एक्सप्रेस से लखनऊ और फ़िर बस में सवार होकर आ गये हम फैज़ाबाद (अब, जनपद अयोध्या)
फैज़ाबाद तो फैज़ाबाद ? उस पर भी नीम चढ़े करेले जैसी पोस्टिंग CO सिटी का पदभार…
6 दिसम्बर 1992 से पूर्व और बाद के घटनाक्रम पर चर्चा किये बिना उस दिन दोपहर के समय DM/SSP के आदेशों के अनुपालन में, मैं अपने सहयोगी तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट, फैजाबाद, श्री सुधाकर अदीब जी के साथ RAF की 42 टीमों के साथ फैज़ाबाद कैण्ट से अयोध्या की ओर कूच किये थे। मजिस्ट्रेट साब को तो CRPF के अडिशनल DIG ने लगभग अपने कब्ज़े में कर लिया था और मैं स्वयँ लगभग एक किलोमीटर लम्बे काफ़िले को लीड/पायलट कर रहा था..
9 किमी लम्बे मार्ग का दृश्य अब भी हू बहू याद है। साकेत कॉलेज से आगे संघ सरकार के इस फ़ोर्स को विवादित ढाँचे तक बिना नर-सँहार के पहुँचाना असंभव सा था और हम दुश्मन सेना की तरह बिना आदेश ऐसा कुछ कर भी नहीं सकते थे…
चारों ओर मानव शरीरों का अथाह समुद्र और उसके बीचों बीच आधुनिक हथियारों से लैस भारी भरकम केंद्रीय पुलिस बल। अज़ीब सी खामोशी के बीच किंकर्तव्य विमूढ़ हम दो मझोले अफ़सर। भारी कशमकश के बीच तभी वायरलेस आदेश मिला कि केंद्रीय बलों को उनके कैम्प वापस ले जाया जाय और हम समूचे मार्ग पर हथगोलों, गोलियों, आगज़नी, जय श्रीराम के उदघोषों के बीच से निकल कर किसी तरह केंद्रीय बलों को सकुशल वापस लाकर चल दिये वापस अपने प्रशासनिक ड्यूटियों के निर्बहन की ओर..
उस रात और आगे के दिनों में फ़िर जो-जो कुछ हुआ, वह सब कुछ इतिहास के पन्नों में दर्ज़ है ..
हाँ, बात स्वo कल्याण सिंह जी के व्यक्तित्व की हो रही थी तो मुझे याद है उस दिन अपना त्यागपत्र लिखने से पहले उस महामानव ने जो एक आदेश जारी किया होगा, उसे यहाँ शब्द ब शब्द कोट कर रहा हूँ, जो उनके अपने हस्तलेख में था और हमें एक सामान्य वायरलेस सन्देश के रूप में प्राप्त हुआ था..और यह संभवतः वह दस्तावेज है, जो हम सभी मझोले दर्ज़े के अधिकारियों को विभिन्न एजेसियों (सीबीआई)/ लिब्रहान कमिशन आदि द्वारा सम्पन्न जाँचों से बाहर निकाल सका….
उस असाधारण राजपुरुष को नमन..
मुख्य सचिव/माo मुख्य मन्त्री जी
“इस समय अयोध्या में परिस्थितियाँ जिस बिंदु तक पहुँच गयी हैं, उसे देखते हुये गोली चलाने से भारी हिंसा की पूरी-पूरी सम्भावना है। गोली चलाने से भड़की हिंसा की लपटें पूरे प्रदेश और देश को लपेट सकती हैं। यह स्थिति और भी अधिक दुःखद तथा दुर्भाग्यपूर्ण होगी।
अतः गोली न चलाई जाय। गोली चलाने के अतिरिक्त अन्य सभी सम्भव उपाय स्थिति को नियन्त्रण करने के लिए किए जायँ।
हo कल्याण सिंह
6.12.92
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