स्मृति शेष- इंदिरा_हृदयेश – चली गई- हरीश रावत, पूर्व सीएम

डॉ इंदिरा ह्रदयेश के निधन के बाद उन्हें हर दल व बर्ग से श्रद्धांजलि देने का सिलसिला जारी है। पूर्व सीएम हरीश रावत लगातार सोशल मीडिया में अपने उदगार व्यक्त कर रहे हैं। अपनी विनम्र श्रद्धांजलि में वे कह रहे हैं कि इंदिरा जी से तमाम मतभेद के बाद भी कई मुद्दों पर दोनों सहमत थे। श्रद्धांजलि में उस समय की राजनीतिक तल्खी भी उभर आयी..


       डाॅ. इन्दिरा हृदयेश जी उत्तराखण्ड में कांग्रेस की एक बड़ी नेता और विधानमण्डल में प्रतिपक्ष की नेता थी। श्रीमती हृदयेश सबको सदमे में छोड़कर उस दिशा की ओर चली गई जहां से केवल स्मृतियां/यादें शेष रह जाती हैं। परि दंत कथाओं की नायका की तरह उन्होंने अपने लम्बे सार्वजनिक जीवन में न केवल पद प्राप्त किये बल्कि प्रत्येक पद को अपनी प्रतिभा व जीवटता से शोभायमान किया।

दिनांक-12 जून, 2021 को 1 बजे, हम सब लोग राज्य के प्रभारी श्री देवेन्द्र यादव जी के घर पर बैठकर 2022 के लिये कांग्रेस की सत्ता वापसी के लिये जनसंघर्ष का खाका तैयार कर रहे थे, इंदिरा हृदयेश जी बहुत उत्साहित थी। हमने खटीमा के शहीद स्थल से मसूरी तक परिवर्तन यात्रा के प्रथम चरण का कार्यक्रम बनाया तो इन्दिरा हृदयेश जी हम सबका उत्साह बढ़ाते हुये सलाह दे रही थी कि सबको पूरी ताकत से इस यात्रा में जुड़ना पड़ेगा।

देवेन्द्र यादव जी के आतिथ्य में जब मैंने उनको रोटी परोसी तो इन्दिरा जी ने बहुत हंसते हुये कहा कि भय रोटी ही क्यों कभी कुछ और भी परोसा करो। मैं भी उनके इस हास्य-परिहास में मुदित भाव से चुप रह गया। बैठक के बाद पत्रकार मित्रों ने श्री देवेन्द्र यादव जी से पूछा कि क्या आप चुनाव सामुहिक नेतृत्व में लड़ेंगे या चेहरा घोषित करेंगे? श्री देवेन्द्र यादव ने जो आज तक स्थिति है, उसी का उल्लेख किया। मगर इन्दिरा जी तो इंदिरा जी थी, वे सामुहिक नेतृत्व का झंडा लेकर निकल पड़ी और पत्रकारों को अपनी ओर से बता दिया कि हमने बैठक में यह निर्णय लिया है।

बाद में पत्रकारों ने जब मुझसे पूछा तो मैंने हंसते हुये कहा कि इंदिरा हृदयेश जिन्दाबाद और साथ ही पत्रकारों को स्मरण कराया कि अशोक चौहान समिति ने असम व केरल में चुनावी हार का कारण राज्य स्तर पर नेतृत्व को लेकर असमंजस एक बड़ा कारण रहा है। उस समय मुझे मालूम नहीं था कि अंतिम बार इंदिरा हृदयेश जिन्दाबाद कह रहा हॅू। दूसरे दिन मध्यान के वक्त खबर मिली कि इंदिरा हृदयेश जी नहीं रही, समाचार पर सहसा विश्वास नहीं हुआ। मैं भागा-2 उत्तराखण्ड सदन पहुंचा। इंदिरा जी पलंग पर इतने शान्त भाव से लेटी हुई थी कि लगता ही नहीं था कि वो स्वर्गवासी हो गई हैं।


        मेरी वर्षों पहले स्व. गोविन्द सिंह माहरा जी के आवास पर इन्दिरा हृदयेश जी से मुलाकात हुई थी, उनके साथ श्री ओमप्रकाश शर्मा जो उस समय शिक्षकों के प्रान्तीय नेता थे, वो भी बैठे हुये थे। गोविन्द सिंह माहरा जी उस समय विधायक थे और इन्दिरा जी अपने चुनाव के सिलसिले में आयी थी और गोविन्द सिंह माहरा जी ने अपने क्षेत्र के ब्लाॅक प्रमुखों को बुलाया था कि हम लोग भी इन्दिरा जी के साथ खड़ें हों और उस दिन के बाद मैं हमेशा इन्दिरा जी का कार्यकर्ता रहा। जब वो दूसरा चुनाव लड़ी तो उनको उस समय एक चुनौती मिल गई थी। उस चुनौती में पार पाने में हमने उनकी मदद की, तब तक मेरी सक्रियता ब्लाॅक प्रमुख से आगे बढ़ गई थी और फिर एक बड़ी नेता के रूप में यदा-कदा हम उत्तर प्रदेश के किसी मंत्री के वहां, विशेष तौर पर नारायण दत्त तिवाड़ी जी के यहां उनके दर्शन कर लिया करते थे। मगर कभी कोई बातचीत नहीं हुई।

एक दिन नारायण दत्त जी का हल्द्वानी क्षेत्र का दौरा था, फियेट कार में आगे नारायण दत्त जी और पीछे ब्रहमदत्त जी और मैं बैठे थे, फिर इंदिरा जी आयी तो हमने उनके लिये जगह बनाई, तो मैंने अपने को सिकोड़ कर कहा कि इंदिरा जी आपको तकलीफ हो गई! बोली हाॅ, यदि महिला को तकलीफ दोगे तो उसका घाटा हमेशा उठाओगे और मुझको उनकी यह बात हमेशा याद रही और इसलिये मैंने अपने राजनैतिक जीवन में केवल एक बार को छोड़कर हमेशा इंदिरा जी की बात को माना।

मैं प्रदेश अध्यक्ष बना तो हमें कांग्रेस विधानमण्डल दल की नेता को नामित करना था, श्री ऑस्कर फर्नाडीज जी का मेरे पास टेलीफोन आया कि आप क्या चाहते हैं। मैंने कहा, इंदिरा हृदयेश जी और के.सी. सिंह बाबा जी, दो विधायक हैं। के.सी. सिंह बाबा स्वयं चाहते हैं कि इंदिरा जी को नेता बना दिया जाय। बोले आप पत्र दीजिये कि आप सब लोगों की सहमति है। मैंने पत्र दे दिया और फिर एआईसीसी ने भी अपनी ओर से नियुक्ति पत्र जारी किया। जब हम विधानसभा के लिये उम्मीदवारों का चयन कर रहे थे। सारी चुनाव समिति चाहती थी कि नैनीताल और उधमसिंहनगर के उम्मीदवारों का चयन भी अन्य जिलों के साथ-2 हो जाय।

इंदिरा जी ने मुझसे दो बार कहा कि क्या नैनीताल और उधमसिंहनगर को तिवाड़ी जी के ऊपर नहीं छोड़ा जा सकता? मेरे द्वारा असमर्थता व्यक्त करने पर इंदिरा जी एक दम मायूस हो गई और कहने लगी कि यदि मैं और आप नाम दे देंगे तो तिवाड़ी जी बहुत नाराज हो जायेंगे। मेरा हल्द्वानी से चुनाव जीतना कठिन हो जायेगा। श्री अर्जुन सिंह जी उस समय कतिपय कारणों से बहुत नाराज थे और वो तिवाड़ी जी व इंदिरा जी के एक निर्णय से इतने कोपित थे कि उस निर्णय में उनका साथ देने के लिये उन्होंने मुझको भी बहुत फटकारा और अर्जुन सिंह जी ने चुनाव समिति में कहा कि एक व्यक्ति जो चुनाव समिति का सदस्य नहीं है, पूरी चुनाव समिति उसकी ईच्छा जानने के लिये निर्णय न ले, ये कांग्रेस में पहली बार हो रहा है। कुछ सदस्यों ने कहा कि यदि तुमने उनकी कोई राय ली है तो उसको समिति के सामने रखो, क्योंकि मैं ही नामों को पायलट कर रहा था।

मैं कुछ कहने को होता था तो इंदिरा जी कोहनी मार देती थी कि मैं वही कहूॅं जो इंदिरा जी ने मुझसे कहने को कहा है। मैंने हाथ जोड़कर के सारी चुनाव समिति से प्रार्थना कि हम कल तक नाम ले आयेंगे और सर्वसम्मत राय बनाकर के कार्यसमिति के सम्मुख प्रस्तुत कर देंगे। तिवाड़ी जी की अचकन के अन्दर की जेब बड़ी गहरी होती थी, इंदिरा जी वहां से नाम नहीं निकाल पायी। दूसरे दिन भी चुनाव समिति में उत्तराखण्ड विचारार्थ लिस्टेड था। मुझे, श्री गुलामनबी, श्री ऑस्कर फर्नाडीज, श्री अहमद पटेल और श्रीमती अंबिका सोनी जी सेे विशेष अनुरोध करना पड़ा। दूसरे दिन भी मैंने कहा कि हम अगली बैठक में फिर नाम दे देंगे। अगली बैठक नहीं हुई तो फिर उन नामों को लेकर के हम सोनिया जी के पास गये। बड़ी मुश्किल से तिवाड़ी जी ने मेरे सुझाये हुये कुछ नामों पर सहमति दी। मैं जानता था कि कांग्रेस की सत्ता वापसी के लिये तिवाड़ी जी का सहयोग आवश्यक है। मैंने अपने साथियों की कीमत पर तिवाड़ी जी की लिस्ट का साथ दिया और इंदिरा जी को खुश रखा। आज भी मेरी नजर कुछ साथियों के सामने झुक जाती है। जिन्हें उस समय कांग्रेस का टिकट मिलना चाहिये था। दुःख की बात यह है कि उन साथियों की बारी फिर कभी नहीं आयी। राजनीति बहुत निर्दयी होती है। खैर मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे उन साथियों ने हमेशा कांग्रेस का झंडा उठाये रखा।


        भले ही मैंने इंदिरा जी के मंत्र का अनुसरण किया, मगर इंदिरा जी इस तथ्य को कभी नहीं भूल पायी कि मेरे अचानक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने से उनकी ताजपोशी नहीं हो पायी। मुझे कभी-2 लगता था कि इंदिरा जी की हृदय में यह चुभन हमेशा बनी रहेगी। मगर मैंने उन्हें ऐसा कोई अवसर नहीं दिया, जब मुझसे उनका आदर करने में कोई चूक हो गई हो। श्रीमती इंदिरा हृदयेश जी के आंखरी चुनाव तक मैंने हमेशा उनकी चुनावी सभाओं को संबोधित किया। 2017 के विधानसभा चुनाव में मैंने उनके लिये पदयात्रा की जो मेरा दायित्व था। मैं बड़ी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में राज्य का मुख्यमंत्री बना। मुझ जैसे मुख्यमंत्री के साथ सामंजस्य बैठाना किसी भी वित्तमंत्री के लिये पहाड़ चढ़ने जैसा था। मैं दिन भर कई जगह सभाओं में जाकर के घोषणाएं करके आता था तो शाम को जब इंदिरा जी को टेलीफोन करता था कि इंदिरा जी मैंने आपका काम बढ़ा दिया है, आपके खजाने में डाका डाल दिया है तो वो कहती थी कि कोई चिन्ता नहीं और उनके सहयोग से ही हम आपदा प्रबन्धन के साथ-2 विकास की योजनाओं को भी आगे बढ़ा पायें। वित्तीय प्रबन्धन में मैंने उनका बहुत साथ दिया, हमने बहुत इनोवेटिव तरीके निकाले जिससे राज्य का राजस्व बढ़े। मगर एक स्थिति ऐसी आयी जिसमें हल्द्वानी अन्तर्राजीय बस अड्डे को लेकर मैं बड़ी उलझन में फंस गया।

बस अड्डे का निर्माण कार्य मेरे सलाहकार व सचिवगण मिलकर एक कम्पनी को दे चुके थे। इंदिरा जी कुछ दिनों बाद मेरे पास दूसरी कम्पनी को ठेका देने का प्रस्ताव लेकर आयी। दो दिन बाद फिर इंदिरा जी आयी और कहने लगी कि आपको अपना प्रस्ताव बदलना पड़ेगा। मुझे इंदिरा जी की पहली सीख याद आई मैंने कानून आदि से बचते-बचाते पहला ठेका रद्द कर दिया और उसी कम्पनी को काम दे दिया जिसको श्रीमती हृदयेश देना चाहती थी। खैर जब मैं अन्तर्राष्ट्रीय बस अड्डे को बना हुआ नहीं देखता हॅू तो बहुत तकलीफ होती है। स्टेडियम के लिये एक मुश्त डेढ़ सौ करोड़ रूपये की व्यवस्था करनी थी। कहां से व्यवस्था की जाय, बड़ा सवाल था। मैं दिल्ली भागकर के गया और किसी तरीके से आपदा की कुछ मदों का कुछ पैसा और कुछ दूसरे विभागीय मदों का पैसा लाकर के ताकि जो उन मदों में राज्य कोष से हम खर्च कर रहे थे उसको स्टेडियम के लिये डायवर्ट किया जा सके तो वो पैसा हमने डायवर्ट किया और स्टेडियम जिसकी प्रोग्रेस इंदिरा जी बीच-बीच में बताती रहती थी, उसको पूर्ण किया गया और आज उस स्टेडियम में झाड़-झंकार खड़े हो रहे हैं और मुझे एहसास है कि इंदिरा हृदयेश जी के दिल में झाड़-झंकार कांटे की तरह चुभे होंगे।

मैंने सोलर पार्क और जू, क्योंकि लोग नैनीताल आते हैं, पर्यटकों को हल्द्वानी में कुछ इंगेजमेंट नहीं मिल पाता था तो हमने उसके लिये जू पार्क हल्द्वानी में स्वीकृत किया, पैसा हमारे पास उस समय इतना उपलब्ध नहीं था लेकिन फिर भी हमने 10 करोड़ रूपया उसके लिये रखा और काम प्रारम्भ करवाया, जिसे वर्तमान सरकार ने रोक दिया है। हाॅं एक बात में मेरी और इंदिरा जी की सहमति नहीं बन पायी। मैं, गौला रिवरफ्रंट बनाना चाहता था। इंदिरा जी को यह लगता था कि रिवरफ्रंट बनाने से जो बजरी, बोल्डर निकालने वाले लोग हैं उनको तकलीफ होगी और मैं समझाता रहा कि नहीं इसको वनभूलपुरा तक बनायेंगे और जो निकासी का जो एरिया होगा वो उससे आगे की तरफ का होगा, उन्होंने कहा नहीं मुझे एक बार देख लेने दीजिये, एक बार आस्वस्थ हो जाऊं क्योंकि उनकी चिन्ता अपने क्षेत्र के लोगों के लिये थी और मैंने भी उस चिन्ता को समझा। व्यक्ति के बहुत सारे सपने होते हैं वो अधूरे रह जाते हैं। मगर कालचक्र से कोई नहीं लड़ पाता है, अधूरे सपनों को छोेड़कर व्यक्ति वहां चला जाता है, जहां उसकी यादें शेष रह जाती है। मुझे अपने लोगों की क्षमता पूरा भरोसा है कि हम इन्दिरा जी के अधूरे सपनों को आगे आने वाले समय में पूर्ण कर सकेंगे। फिर उन सपनों को पूरा करने की लड़ाई में इंदिरा हृदयेश जी का आशीर्वाद भी साथ होगा।


         राजनैतिक जीवन में मतभेद होते हैं और एक पार्टी के अन्दर कभी-2 आकांक्षाओं और महत्वाकाक्षाओं की टकराहट स्वभाविक हैं, पार्टी की शक्ति का विकास भी इसी तरीके से होता है। इंदिरा जी के साथ बहुत तर्क-वितर्क होता था, मगर अनंतोगत्वा हम एक-दूसरे से सहमत हो ही जाते थे। इंदिरा जी यदा-कदा मुझ पर कभी-2 अपने गले की खराश निकालती रहती थी, मगर मुझे उसमें भी बड़ा आनन्द आता था। वो कितनी ही नाराज रही हों मगर सामने पड़ने पर वो पूरा आदर भाव और कभी-2 स्नेह भाव भी मेरे ऊपर दिखाती थी, मैं उन स्नेहभाव के क्षणों को एक पूंजी के तौर  सजोकर रखूंगा। व्यक्ति की अच्छाई देखनी चाहिये, मेरे लिये इंदिरा जी के साथ की कई स्मृतियां हैं, जिनमें उत्तराखण्ड कांग्रेस को लाने का संघर्ष भी सम्मिलित है। वर्ष 2022 का संघर्ष कठिनत्तर है। संघर्ष के हर मोड़ पर इंदिरा जी आप हमें बहुत याद आयेंगी। आप हमारी अघोषित कमाण्डर थी, जिसे हम सब दिल से स्वीकारते थे। भविष्य की इस लड़ाई में आपका सानिध्य न सही मगर आशीर्वाद हमें कमाण्ड करेगा। हम एकजुट होकर लड़ेंगे, जीतेंगे और आपके सपनों को पूरा करेंगे।
         अलविदा इंदिरा हृदयेश जी।
                    ‘‘जयहिंद’’
                                   (हरीश रावत)

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