स्मृतिशेष- सिरिल आर रैफियल- पहाड़ों के सामजिक परिवर्तक

जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’,लेखक-पत्रकार

Wacth Cyril Ji, s struggle and passion for mountain people in this documentary film. He will always remains in our Heart.

उत्तराखंड के गावों के विकास के लिये अपना जीवन समर्पित करने वाले समाजसेवी सिरिल रैफियल आखिरकार पुण्य धाम को चले गए. सन सत्तर के दसक में सिरिल जी उत्तराखंड के सामाजिक क्रांतिकारी स्वामी मन्मथन के सम्पर्क में क्या आये कि उनके जीवन की दिशा ही बदल गयी. ब्रिटिश एयरवेज के मैनेजर के रूप में दुनिया घूमने वाले एक शख्स ने बांज के पत्तों को अपना बिछौना बना डाला. इसी शख्स का नाम था सिरिल रोबिन रैफियल.

सिरिल जी का जन्म तत्कालीन स्वतंत्रता आन्दोलन के गढ़ इलाहाबाद में हुआ था पिता डॉ. स्टीफन चार्ल्स व माता बेरिल रोज की सातवी संतान थे सिरिल जी. दुसरे विश्व युद्ध की समाप्ति व भारत की स्वतंत्रता के दौर में उनके पिता को अपने बच्चो के भविष्य की चिन्ता के रहते ब्रिटेन जाना पड़ा. सिरिल सबसे छोटे थे, सीनियर कैम्ब्रिज की परीक्षा का समय था. उनको स्कूल से सीधे बम्बई बंदरगाह जाने को विवस होना पड़ा. 22 स्कूली दोस्तों के साथ की लम्बी दोस्ती एक झटके में छूट गयी. एक भेंट में सिरिल जी ने कहा “पानी का जहाज धीरे – धीरे समुद्र में फिसलता जा रहा था और मेरी नजर केवल गेटवे ऑफ़ इंडिया पर लगी थी धीरे धीरे गेट ओझल होता रहा.

मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था की मुझे कुछ भी नहीं बताया गया. में अपने दोस्तों को भी नहीं मिला की में इतना दूर जा रहा हु कि फिर कभी मिल पायें कि नहीं. मुझे अपने माता पिता पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उसी जहाज में भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड में टेस्ट मैच खेलने जा रही थी, सारे खिलाड़ी मेरे दोस्त बन गए व दो हफ्ते कब बीते पता ही नहीं चला.” किसी तरह परिवार इंग्लैण्ड में स्थापित हुआ. प्रबन्धन की पढाई के बाद यूथ क्लब सुरु किया और आखिरकार ब्रिटिश एयरवेज में मैनेजर की नौकरी लग गयी. दुनिया घूमने के बचपन के सपनो को पंख लग गये. कुछ साल बाद एयरवेज की नौकरी से ऊब होने लगी. ब्रिटेन के मौसम से सिरिल तंग आ चुके थे व नया ठिकाना कनाडा बना.

60 व 70 के दसक में हिप्पी मूवमेंट चरम पर था सिरिल व् प्रभावित थे रोजी रोटी के साथ कम्यून का जीवन रास आने लगा. दक्षिण ब्रिटिश कोलंबिया में ‘आकाशा’ नाम का कम्यून खोला व पर्यटन व मीडिया में काम सुरु किया. कैनेडियन ब्रोडकास्टिंग सर्विस में समन्वयन का काम किया. इस बीच वे भारत भी आते जाते रहे. भारत की सांस्कृतिक विविधता व जनजीवन से अथाह प्यार करने वाले सिरिल को एक मौका इलाहाबाद कुम्भ में शामिल होने का मौका मिला. यही वो अवसर था जब उन्होंने मन बना लिया था कि वे वापस भारत लौटेंगे व फिर कभी विदेश नहीं जायेंगे.

अगले 6 महिने के भीतर 1976 में सिरिल जी ने कनाडा की सारी संपत्ति दोस्तों में बांटकर दो सूटकेशो में जरुरत भर का सामान भरा और मसूरी पंहुच गए. यहाँ उनके पुराने दोस्तों के बीच वे जल्दी रच बस गए. यहाँ आकर वे बहुत खुश थे. इसी दौरान उन्होंने प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक रस्किन बांड की कहानी पर ‘बिग बिजनेस’ फिल्म बनायी.

लेकिन ठौर तो कहीं और ही होना था. इसी बीच एक दिन सिरिल जी की मुलाकात उस दौर के चर्चित सामाजिक क्रांतिकारी स्वामी मन्मथन से मुलाक़ात हुई. इन्ही दिनों स्वामी मन्मथन उत्तराखंड विस्वविध्यालय आन्दोलन, बलि प्रथा, सिल्कोट चाय बागान आन्दोलन व हिंडोलाखाल पेयजल आन्दोलन की सफलता के बाद श्री भुनेश्वरी महिला आश्रम के स्थापना कर चुके थे. इस मुलाक़ात ने सिरिल जी को सामाजिक कार्यों के लिए प्रेरित किया. कुछ दिनों बाद सिरिल जी मसूरी के आरामदायक जीवन को छोड़कर टेहरी गढ़वाल के अन्जनिसैन के गाव के झोपड़े में रहने आ गए. स्वामी मन्मथन के साथ मिलकर आश्रम को सामाजिक गतिविधियों का केंद्र बनाना सुरु कर दिया. स्वामी जी के सामाजिक सरोकारों व सिरिल जी के प्रबंधकीय कौशल ने संस्था को राज्य ही नहीं, देश ही नहीं. अंतररास्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया.

महिला व बाल विकास, रोजगार कौशल, जन वकालात, जल, जंगल, जमीन, स्वास्थ्य, शिक्षा, आपदा प्रबंधन जैसे अनेक पहले संस्था ने सुरु किये. स्वामी मन्मथन पर्वतीय समाज व जनता के बीच इतने लोकप्रिय हो गए थे कि कई समाज विरोधी तत्वों की जड़े हिलने लगी. कुचक्र रचा गया व एक दिन स्वामी मन्मथन की गोली मारकर हत्या कर दी गयी. सिरिल जी ने इस घड़ी में भी हिम्मत नहीं छोड़ी और पुनः दुगुनी ताकत के साथ संस्था को और नये मुकाम के लिए कमर बाँध दी. परित्यक्ता महिलाओं, बिन माँ पिता के संतानों के जीवन को सवारने के साथ साथ पर्वतीय गावों के विकास का बीड़ा उठाया. आश्रम में पले बढ़े बच्चे आज सुखी जीवन ब्यतीत कर रहे हैं. सिरिल जी के नेतृत्व में कई रास्ट्रीय – अंतर रास्ट्रीय संथाओं की परियोजनाओं में उत्तराखंड ही नहीं देश के सैकड़ों नौजवानों ने ग्रामीण विकास के कार्यों को संपन्न किया.

सन 2008 के दौरान सिरिल जी ने स्वेच्छा से संस्था के दैनिक कार्यो से अपने को विराम देते हुए संस्था की बागडोर आश्रम मैं ही पले-बढ़े युवकों को सौप दी व पूरा फोकस पर्वतीय बच्चों की संस्था पर्वतीय बाल मंच पर देना सुरु किया. अंतिम दौर तक भी सिरिल जी इन संस्थाओं सहित दर्जनों सामाजिक संस्थाओं के संस्थापक व सक्रीय सलाहकार रहे. अत्यंत बुजुर्ग होने पर उनका प्रवास जगह जगह होता रहा. अपने अंतिम समय में सिरिल जी ने अपनी कर्मभूमि में ही अपना जीवन ब्यतीत करने का फैसला लिया था. अन्जनिसैन स्थित भुवनेश्वरी महिला आश्रम परिसर में 10 दिनों से बीमार होने पर उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिये हर्बर्टपुर लाया गया था जहाँ 5 दिन के बाद सिरिल जी ने अपनी अंतिम साँस ली. कल दिनांक 14/06/2021 को उनकी इच्छा के अनुसार उनको विकासनगर यमुना के तट पर अग्नि को समर्पित कर दिया जायेगा. अंकल जी के नाम से पुकारे जाने वाले प्यारे संबोधन को भुला पाना आसान नहीं है. प्रिय चाचा जी को अंतिम सलाम व भावपूर्ण श्रदांजलि.

Wath Cyril Ji, s struggle and passion for mountain people in this documentary film. He will always remains in our Heart.

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