गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव को सुप्रीम कोर्ट की सख्त फटकार, अंतिम मौके के तौर पर एक माह का समय दिया फैसले के सम्पूर्ण अनुपालन का। 17 मई को पुनः कुलसचिव और कुलपति को कोर्ट में पेश होने का आदेश
अविकल उत्तराखंड
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गढ़वाल विवि फार्मेसी विभाग के शिक्षकों से जुड़े अवमानना के मामले में कुलपति और कुलसचिव को फटकार लगाते हुए एक माह में समस्त सेवा लाभ देने के लिए सख्त हिदायत दी है । कोर्ट ने उचित परिणाम भुगतने को तैयार रहने को भी कहा है। कोर्ट ने उपस्थित कुलसचिव और कुलपति को ताकीद किया कि किसी भी कीमत पर इस मामले में फैसले के सम्पूर्ण अनुपालन में किसी प्रकार की कोई भी कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
गौरतलब है कि फार्मेसी विभाग के शिक्षकों के पक्ष में सितंबर 3 को सुप्रीम फैसले के बावजूद गढ़वाल केंद्रीय विश्विद्यालय द्वारा आदेश के अनुपालन नहीं करने पर अवमानना के मामले में कुलसचिव और कुलपति को सुप्रीम कोर्ट ने विगत 11 अप्रैल को तलब किया था।
कोर्ट ने कुलसचिव और कुलपति को व्यक्तिगत पेशी से छूट देने की प्रार्थना को भी सिरे से नकार दिया और समस्त सेवा लाभ देकर रिपोर्ट के साथ आगामी 17 मई को पुनः कुलसचिव और कुलपति को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है। इस संदर्भ में आधिकारिक आदेश 18 अप्रैल को निर्गत किया गया है।
विश्विद्यालय के द्वारा फार्मेसी विभाग के 8 शिक्षकों के पक्ष में 03 सितंबर 2021को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का 6 महीने बाद भी पालन ना करने पर अवमानना के केस की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने अवमानना का नोटिस जारी कर कुलपति प्रोफेसर अन्नपूर्णा नौटियाल और कुलसचिव डॉ अजय खंडूरी को व्यक्तिगत रूप से तलब किया गया था । और फैसले के पालन ना किए जाने का स्पष्टीकरण देने हेतु आदेश 11 फरवरी को जारी किया गया था। फैसले के बाद भी समस्त सेवालाभ देना तो दूर, कोरोना काल में कई महीने का वेतन भुगतान तक शिक्षकों को नहीं हुआ था।
विश्विद्यालय का उपेक्षापूर्ण एवम् पूर्वाग्रह से ग्रस्त रवैए से विश्विद्यालय के ही शिक्षकों को दी जा रही मानसिक यंत्रणा एवम् आर्थिक क्षति का कारण सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना याचिका को सुनने के बाद अधिकारियों से पूछा। अवमानना के केस में 11 अप्रैल को कुलपति और कुलसचिव को सुप्रीम कोर्ट में तलब किया गया था।
विदित हो कि गढ़वाल विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग के शिक्षकों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 3 सितंबर 2021 को आया था।
फार्मेसी विभाग के एक एसोसिएट प्रोफेसर और सात अस्सिटेंट प्रोफेसर्स द्वारा हाइ कोर्ट में 2011 में अपील दायर की गई थी जिसपर हाईकोर्ट द्वारा विश्वविदयालय के हक़ में 2013 में फैसला दिया । इस फैसले को शिक्षकों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। यह फैसला एक ऐतिहासिक फैसला करार देते हुए न्यायालय ने इसे जुडिशल नोटिस बनाया और सरकारी कर्मचारियों की सेवा शर्तों के बारे में एक नजीर पेश करते हुए नियोक्ता की मनमानी का विरोध दर्ज करने का अधिकार सरकारी कर्मचारियों को दिया है।
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