..तो हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार कर गयी गढ़वाल विवि की कार्यपरिषद

ऑनलाइन शिक्षक भर्ती प्रकरण- क्या गढ़वाल विवि प्रशासन ने एक्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्यों को बताया होगा उच्च न्यायालय का आदेश.

उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद शिक्षक नियुक्ति के लिफाफे खोलने का मसला,देखें चयनित शिक्षकों की सूची

अविकल उत्तराखण्

श्रीनगर/देहरादून/नैनीताल। ‘अविकल उत्तराखण्ड’ न्यूज पोर्टल में “हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना ” की खबर लगते ही गढ़वाल विवि ने अपनी वेबसाइट पर 9 नवम्बर को आयोजित ऑनलाइन (ऑनलाइन तब भी जब कि सुप्रीम कोर्ट भी एक मामले में कह चुका है कि कोविड का समय चला गया है ) कार्य परिषद की बैठक के कार्यवृत्त को डाला है। जिसके अनुसार उन्होंने
भर्ती मामले में सुमिता पंवार बनाम गढ़वाल विश्वविद्यालय के केस में हाई कोर्ट के निर्णय का जिक्र तो किया किंतु कुलसचिव के हवाले से यह कह कर कि अन्य पदों पर चूंकि कोई प्रत्यावेदन या विरोध पत्र नही मिला है अतः सारे शेष नियुक्ति के लिफाफे खोले जा सकते हैं।

इस फरमान को विश्विद्यालय प्रशासन ने तब निकाला है जब कि विश्विद्यालय उच्च न्यायलय में हार के साथ संपूर्ण भर्ती प्रक्रिया के दोष पूर्ण सिद्ध होने के साथ ही इसकी स्वीकारोक्ति शपथ पत्र उच्च न्यायालय में दे चुका है। इतना कुछ उच्च न्यायालय में होने के बाद भी गढ़वाल विश्वविद्यालय यह नही समझ पाया कि क्यों इंटरव्यू और सभी निर्णयों पर रोक उच्च न्यायालय ने लगाई थी।

एक ओर तो गढ़वाल विश्विद्यालय के हाकिमों ने यह कहा कि भूगोल समेत अन्य सभी पदों पर पुनः आवेदन मांगे जाएंगे और दूसरी ओर चयन प्रक्रिया गलत सिद्ध होने के बावजूद तीन विभागों में लगभग दो दर्जन नियुक्तियों के लिफाफे आपाधापी में खोल कर अगले ही दिन नियुक्ति पत्र जारी भी कर दिए। (देखें कार्यपरिषद की बैठक के मिनट्स)


‘अविकल उत्त्तराखण्ड’ की इस खबर पर कि “गढ़वाल विश्वविद्यालय ने एक्जीक्यूटिव काउंसिल के समस्त सदस्यों को अंधेरे में रखा और नियुक्ति करने पर किसी भी रोक के ना होने की बात कहकर लिफाफे खुलवा दिए” विश्विद्यालय प्रशासन द्वारा जारी कार्य परिषद के कार्यवृत्त ने इस खबर पर खुदही मुहर लगा दी है। कार्य परिषद की बैठक में 13 सदस्यों ने हिस्सा लिया।


गौरतलब है कि उत्तराखंड के गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में पिछले तीन साल से चल रहे ऑनलाइन शिक्षक भर्ती की गड़बड़ियों और अनियमितताओं का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। विश्विद्यालय प्रशासन की ऑनलाइन शिक्षक भर्ती में हीलाहवाली और मनमानी को माननीय मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पूरी प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए केस WPSB/542/2022 में बीते 2 नवंबर को विश्विद्यालय के खिलाफ फैसला सुनाते हुए सख्त शब्दों में आरक्षण के नियमों का पालन ठीक से करने की हिदायत दी थी।

साथ ही पूर्ण प्रक्रिया को दोषपूर्ण मानते हुए पहली सुनवाई में ही समस्त आगामी भर्ती प्रक्रिया, इंटरव्यू एवम निर्णयों पर रोक लगा दी थी। जिस पर विश्विद्यालय को घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा था। विश्विद्यालय ने इंटरव्यू एवम अब तक करवाए गए इंटरव्यूज के निर्णयों के लिफाफे खोलने पर लगी रोक को हटाने हेतु आवेदन भी किया था किंतु इसे कोर्ट ने अपने अंतिम निर्णय में भी स्वीकार नहीं किया था। सनद रहे की उच्च न्यायालय ने अपने इस निर्णय में अंत में सभी समस्त पेंडिंग आवेदन रद्द कर दिए थे। अतः आदेश की अंतिम पंक्ति को उच्च शिक्षा के उच्च मस्तिष्क शायद समझ नही पाए या समझना नही चाहते थे। कुलमिला कर इस निर्णय के अनुसार नियुक्ति के लिफाफे खोले ही नहीं जा सकते थे।

वहीं दूसरी ओर इस संबंध में प्रमोद कुमार बनाम गढ़वाल विश्वविद्यालय के केस WPSB/324/2022 में दिए गए अंतरिम आदेश में भी नियुक्तियों पर निर्णय /लिफाफे खोलने पर रोक आज भी प्रभावी है। जिसको गढ़वाल विश्विद्यालय ने कार्य परिषद के माननीय सदस्यों को सूचित ही नहीं किया।

यह भी बता दें कि कार्य परिषद के अधिकांश आंतरिक सदस्य इस तथ्य से भली भांति वाकिफ थे किंतु फिर भी किसी एक ने भी कार्य परिषद की बैठक में विरोध नही किया। सदस्यों का यह रुख या तो यह दर्शाता कि गढ़वाल विश्वविद्यालय में चल रही राजशाही के आगे सब अपने स्वार्थों के चलते नतमस्तक हैं या अपने चहेतों को किसी भी तरह नियुक्त करने के लिए की गई किसी मिलीभगत की तरफ इशारा करता है।

उल्लेखनीय है कि कुछ इसी तरह का मामला मान्यता प्रकरण में गढ़वाल विश्वविद्यालय पर चल रही सीबीआई जांच में भी आया था जब सीबीआई ने विद्या परिषद और कार्य परिषद के सद्स्यों को उनके परिषद के मान्यता के गलत निर्णयों पर शामिल होने पर आड़े हाथ लिया था। तब कई आंतरिक सदस्यों की कमरा नंबर 105 (उन दिनों मीडिया द्वारा की गई रिपोर्ट के अनुसार) में सीबीआई ने देर रात तक पूछताछ की थी।

बीते 9 नवंबर को खुले शिक्षक नियुक्ति लिफाफे से यह साफ हो गया है कि न्यायालय के आदेश की अवमानना गढ़वाल विश्वविद्यालय प्रशासन ने जाने किस दबाव में, गफलत में या फिर जान बूझ कर की है।

इस बीच, माननीय उच्च न्यायालय 2018 के मान्यता मामले की तरह इस अवमानना का कितनी जल्दी और कैसा संज्ञान लेता है , यह भी देखने वाली बात होगी …

गढ़वाल विवि कार्य परिषद की 9 नवंबर को हुई बैठक में खुले नियुक्ति पत्र. फार्मा, केमिस्ट्री व एप्लाइड केमिस्ट्री विषय में चयनित शिक्षकों की सूची

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उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद गढ़वाल विवि ने खोल दिए नियुक्ति लिफाफे

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