विरासत- देहरादून ने देखी टिंचरी माई के संघर्ष व पीड़ा की दास्तां

बसुंधरा नेगी के निर्देशन में दून के खचाखच भरे  टाउन हॉल में हुआ टिंचरी माई का सफल मंचन

अविकल उत्तराखंड

देहरादून।  देहरादून के  नगर निगम प्रेक्षागृह में रविवार की शाम “टिंचरी माई” नाटक का सफल मंचन किया गया । 

वसुंधरा नेगी और टीम के अभिनय से सजे इस नाटक को देखने के लिए पूरा टाउन हॉल खचाखच भरा था। कलाकारों के जीवंत अभिनय व कसे हुए कथानक से दर्शक अंत तक बंधे रहे।

वसुंधरा आर्ट सेंटर समिति के बैनर तले हुए टिंचरी माई के सफल मंचन ने रविवार की शाम को यादगार बना दिया। नशे के विरोध में पूरा जीवन गुजार देने वाली टिंचरी माई ने 1992 में कोटद्वार में आखिरी सांस ली थी।

”टिंचरी माई” के बचपन का नाम “ठगुलि” था, उनका जन्म चोपड़ा-चौथान के मंज्यूर गांव के नौटियाल जाति वंशज में हुआ । उनके जन्म के दो बर्ष बाद उनकी माँ गुजर गई। 09 साल की ठगुली अर्थात दीपा देवी उम्र में उनका विवाह गवानी गांव के गणेशराम नवानी से हुआ जो तब ब्रिटिश फौज में कार्यरत थे। 19 बर्ष की अवस्था में पति की चेचक से मृत्यु जब हुई तब उनकी कोख में एक बच्चा था जिसके जन्म के लगभग डेढ़ दो बर्ष पश्चात उसकी भी अल्पायु में मौत हो गयी।

दीपा देवी पति की मौत के बाद जिस सहारे के सहारे जिंदगी काटने की सोच रही थी उसे भी विधाता ने छीन लिया। भाग्य रेखाओं में उनके लिए कुछ और ही लिखा था। 23 बर्ष की उम्र में उनके साँसारिक माया मोह से विरक्ति हुई और एक दिन वह गंगा घाट हरिद्वार आई पति व बेटे का तर्पण किया व हर की पैड़ी में स्नान कर किसी आश्रम में बाल मुंडवाकर जोगन बन बैठी। नाम मिला इच्छागिरी माई….!

दीपा देवी द्वारा पलायन का विरोध और शराब बंदी के आन्दोलन में सक्रिय भूमिका के कारण उनका नाम  टिंचरी माई  पड़ा। 1954 में आहूत पृथक पर्वतीय राज्य उत्तराखंड की मांग करने वाली पहली महिला नेत्री रही और घर घर जा कर उत्तराखंड राज्य की अलख जगाने वाली उस विराट व्यक्तित्व की स्वामिनी ठगुली  ने 20 जून 1992 को कोटद्वार में ही अंतिम सांस ली।

वसुंधरा कहती हैं क़ि उन्होंने “टिंचरी माई” पर नाट्य मंचन करने का इसलिए निर्णय लिया ताकि वह वर्तमान परिवेश में पंजाब के रास्ते उत्तराखंड में पहुँचे विभिन्न तरह के नशे के कारोबार से हो रहे युवाओं के भविष्य बर्बाद पर जनजागरुकता क़ा माहौल बना सके।

दूसरा यह कि इसे महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दे से जोड़कर एक ऐसी मजबूत इच्छाशक्ति की महिला के किरदार का बखान कर सके जिसने पिछली सदी में टिंचरी नामक दवा (शराब) की दुकानें ही जला डाली जिसे लोग नशे के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। उन्होंने कहा कि टिंचरी माई के जीवन का नाट्य मंचन देखने के बाद ही हम सब जान पाएँगे कि वह कैसे और किन संघर्षों के चलते टिंचरी माई व सदी की महान नायिका कहलाई।

नाटक की रचनाकार, निर्देशक वसुंधरा नेगी ने टिंचरी माई की भूमिका निभाई, सह-निर्देशन, मंच सज्जा वर्षा ठाकुर, गायन राकेश आर्य, वर्षा ठाकुर, सोनिया गैरोला, पूनम नेथानी, निशा नेगी, सुनीता गदल, बांसुरी- महेश पांडे, तबला- मनोज पांडे, ध्वनि और प्रकाश- टी के अग्रवाल, वेश-भूषा- हेमा रावत, गिरिजा चौहान, सलोनी भण्डारी, मेकअप- दिव्या कुकरेजा और ध्वनि सम्पादन अंशुमान चौहान का रहा । 

ज्ञात हो कि वसुंधरा नेगी विगत 15 वर्षों से रंगमंच में विभिन्न किरदार निभा रही हैं। वह अभी तक दो नाट्य संग्रह छप चुका है । वो अभी तक 18 नाटक लिख चुकी हैं । इनमें से ज्यादात्तर नाटकों का मंचन कर चुकी हैं। इससे पूर्व वह बर्ष 2017 में इसी टाउन हाल में “तीलू रौतेली” जैसे नाटक क़ा मंचन कर चुकी हैं।

कार्यक्रम का शुभारंभ परम्परागत रूप से दीप प्रज्वलन के साथ मेयर सुनील उनियाल गामा, पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा, महिला एवं बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष गीता खन्ना, पूर्व मंत्री नारायण सिंह राणा, कवीन्द्र इस्टवाल, रीता टिड्डी, रंजना रावत व रमेश चंद्र घिल्ड़ियाल ने किया। माँगल गीत का गायन पूनम नैथानी एवं साथियों ने किया । संस्कृति विभाग ने भी में योगदान किया।

कन्हैयालाल डंडरियाल प्रतिष्ठान नयी दिल्ली के साहित्यकार रमेश चंद्र घिल्डियाल ने “टिंचरी माई” की पटकथा लेखिका, गीतकार, निर्देशक और परिकल्पना वसुंधरा नेगी को अंग वस्त्र से सम्मानित किया व प्रतिष्ठान की ओर से 11 हज़ार की धनराशि सम्मान स्वरूप भेंट की गई।

मंचन संचालन गणेश खुगशाल गणी ने किया ।

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