आज जन्मदिन-हीरो आफ नेफा-चीन ने भी किया था जसवंत की वीरता को सलाम

19 अगस्त जन्मदिन है महावीर चक्र विजेता उत्तराखण्ड के वीर जसवंत सिंह रावत का

अरुणाचल प्रदेश में बना है जसवंत गढ़ मेमोरियल

चीन ने भी लोहा माना था वीर जसवंत का,.कांसे की प्रतिमा बनाकर दी थी हिंदुस्तान को.

अविकल उत्तराखण्ड

देहरादून
आज जन्मदिन है वीर सैनिक जसवंत सिंह रावत का। वो जसवंत सिंह जिसने 72 घंटे अकेले चीनी सेना से भिड़ कर सीमा की रक्षा की थी। 1962 के चीन से युद्ध के दौरान 17 नवंबर 1962 को जसवंत शहीद हो गए थे। रावत भारतीय थल सेना के जांबाज सैनिकों में थे.

जसवंत की वीरता को नमन करते हुए चीनी सेना ने उनकी एक प्रतिमा बनाकर दी थी. आज भी माना जाता है कि जसवंत सिंह रावत युद्ध के मोर्चे पर बनी उसी चेक पोस्ट पर तैनात हैं. वहां उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई.

उसकी आत्मा आज भी  सीमा की सुरक्षा करती है. उसके कपड़े रोज प्रेस किए जाते हैं. रोज जूतों में पॉलिश होती है. शहीद जसवंत के हर सामान को संभालकर रखा गया है. रोज उनके जूतों पर यहां रोजाना पॉलिश की जाती है. पहनने-बिछाने के कपड़े प्रेस किए जाते हैं. इस काम के लिए पांच जवान तैनात किए गए हैं. यही नहीं, रोज सुबह और रात की पहली थाली उनकी प्रतिमा के सामने परोसी जाती है.बताया जाता है कि सुबह-सुबह जब चादर और अन्य कपड़ों को देखा जाए तो उनमें सलवटें नजर आती हैं। वहीं, पॉलिश के बावजूद जूते बदरंग हो जाते हैं.

अगर कोई सैनिक ड्यूटी पर सोता मिलता है तो जसवंत चांटा मारकर जगा देते है. उनकी बहादुरी की कहानियां आज भी सेना में कही जाती हैं.

जसवंत सिंह रावत (jaswant singh rawat) का जन्म 19 अगस्त, 1941 को ग्राम बाडयू पट्टी खाटली, पौड़ी (गढ़वाल) में हुआ. जसवंत 16 अगस्त, 1960 को चौथी गढ़वाल रायफल लैन्सडाउन में भर्ती हुए. उनकी ट्रेनिंग के समय ही चीन ने भारत के उत्तरी सीमा पर घुसपैठ कर दी. धीरे-धीरे उत्तरी-पूर्वी सीमा पर युद्ध शुरू कर दिया. सेना को कूच करने के आदेश दिये गये. चौथी गढ़वाल रायफल नेफा क्षेत्र में चीनी आक्रमण का जवाब देने के लिए भेजी गई.

1962 के युद्ध (1962 Sino-India War) में उसने पूर्वी छोर पर अकेले ही 72 घंटे तक चीनी सेना से मोर्चा लिया था. कहा जाता है कि आज उसकी आत्मा पूर्वी छोर की रक्षा करती है.

भारत के एक जाबांज सैनिक का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिख गया है. माना जाता है कि उसकी आत्मा आज भी देश के पूर्वी छोर की रक्षा करती है.

भारतकोश डॉट आर्ग वेबसाइट के अनुसार 17 नवम्बर 1962 को जब चौथी गढ़वाल रायफल को नेफा यानि अरुणाचल प्रदेश भेजा गया. तब जसवंत सिंह रावत की ट्रेनिंग खत्म ही हुई थी. उनकी पलटन को त्वांग वू नदी पर नूरनांग पुल की सुरक्षा हेतु लगाया गया. चीनी सेना ने हमला बोला.यह स्थान 14,000 फीट की ऊँचाई पर था. चीनी सेना टिड्डियों की तरह टूट पड़ी.

चीनी सैनिकों की ज्यादा थी. उनके पास साजोसामान भी बेहतर थे. इस वजह से हमारे सैनिक हताहत हो रहे थे. दुश्मन के पास एक मीडियम मशीनगन थी, जिसे कि वे पुल के निकट लाने में सफल हो गये. इस एलएमजी से पुल व प्लाटून दोनों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई.

ये देखकर जसवंत सिंह रावत ने पहल की. वो मशीनगन को लूटने के उद्देश्य से आगे बढ़े. उनके साथ लान्सनायक त्रिलोक सिंह व रायफलमैन गोपाल सिंह भी थे. ये तीनों जमीन पर रेंगकर मशीनगन से 10-15 गज की दूरी पर ठहर गये. उन्होंने हथगोलों से चीनी सैनिकों पर हमला कर दिया. उनकी एलएमजी अपने कब्जे में ले ली. उससे गोली बरसाने लगे.

जसवंत सिंह रावत ने बहादुरी दिखाते हुए बैरक नं. 1, 2, 3, 4 एवं 5 से लगातार गोलियों की बौछार करके दुश्मन को 72 घंटे रोके रखा. स्थानीय महिला शीला ने उनकी बड़ी मदद दी. उन्हें गोला बारूद व खाद्य सामग्री लगातार उपलब्ध कराती रहती. उस समय जसवंत में आई ताकत देखते बनती थी. चीनी सेना इस गफलत में थी कि पूरी भारतीय सेना गोलियों की बौछार करके उन्हें रोक रही है.

1962 के इस भयंकर युद्ध में 162 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए. 1264 को दुश्मन ने कैद कर लिया. वहां पर मठ के गद्दार लामा ने चीनी सेना को बताया कि एक आदमी ने आपकी ब्रिगेड को 72 घंटे से रोके रखा है. इस समाचार के बाद चीनी सेना ने चौकी को चारों ओर से घेर लिया. जसवंत सिंह रावत का सर कलम करके अपने सेनानायक के पास ले गए. चीनी सेना का कमांडर खुद इस सैनिक की वीरता का मुरीद हो गया. बाद में चीन ने जसवंत की brass की प्रतिमा बनाकर भारत को दी.यह प्रतिमा जसवंत मेमोरियल में रखी हुई है.


नेफा की जनता जसवंत सिंह रावत को देवता के रूप में पूजती है. उन्हें ‘मेजर साहब’ कहती है. उनके सम्मान में जसवन्त गढ़ भी बनाया गया है. कहा जाता है कि उनकी आत्मा आज भी देश के लिए सक्रिय है. सीमा चौकी के पहरेदारों में से यदि कोई ड्यूटी पर सोता है तो वह उसे चाटा मारकर चौकन्ना कर देती है.स्थानीय लोगों का मानना है कि जसवंत सिंह रावत की आत्मा आज भी भारत की पूर्वी सीमा की रक्षा कर रही है.

हीरो ऑफ़ नेफ़ा जसवंत सिंह रावत को मरणोपरान्त ‘महावीर चक्र’ प्रदान किया गया. सेना द्वारा उनकी याद में हर वर्ष 17 नवम्बर को ‘नूरानांग दिवस’ मनाकर अमर शहीद को याद करती है.

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