राजभवन में ‘साइंस ऑफ जॉयफुल लिविंग’ पर कार्यशाला का आयोजन


-स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) जौलीग्रांट की ओर से किया गया आयोजन


-राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) रहे समारोह के मख्य अतिथि

अविकल उत्तराखण्ड


देहरादून- स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) जौलीग्रांट की ओर से राजभवन में परम् श्रद्धेय गुरुदेव डॉ.स्वामी राम की शिक्षाओं पर आधारित ‘साइंस ऑफ जॉयफुल लिविंग’ पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में मौजूद लोगों को स्वस्थ मन और स्वस्थ शरीर की अवधारणा के विषय में विस्तृत जानकारी दी गई।

बुधवार को राजभवन में आयोजित कार्यशाला का औपचारिक शुभारंभ मुख्य अतिथि राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) व कुलाधिपति डॉ.विजय धस्माना ने परम् श्रद्धेय गुरुदेव डॉ.स्वामी राम के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया।

कार्यशाला के उद्घटान सत्र को संबोधित करते हुए माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) ने कहा कि मन को शान्त करने के लिए सभी को ध्यान अवश्य करना चाहिए। जैसे शरीर को ठीक रखने के लिए सही खान-पान व नियमित व्यायाम आवश्यक है उसी प्रकार सांसों के लिए प्रणायाम व मन को शान्त रखने के लिए ध्यान अति आवश्यक है। हमारी सनातन संस्कृति में दी गई शिक्षाओं का पालन करने पर भारत पुनः विश्व गुरु बन सकता है।

कार्यशाला के प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए एसआरएचयू के माननीय कुलाधिपति डॉ.विजय धस्माना ने कहा कि कार्यशाला विभिन्न चरणों में आयोजित की गई। कार्यशाला का उद्देश्य स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग की अवधारणा पर ध्यान केंद्रित करना है। डॉ.स्वामी राम की योग व ध्यान पर आधारित डॉ.स्वामी राम की शिक्षाओं पर प्रकाश डाला। जीवन में दया, प्रेम, सेवा जैसे भावों का होना अतिआवश्यक है। ईश्वर ने मनुष्य को विवेकशील प्राणी बनाया है।

70 फीसदी बिमारियां मन के विकार से उत्पन्न
माननीय कुलाधिपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि साल 1968 में गुरूदेव डॉ.स्वामी राम ने कहा था कि 70 फीसदी शारीरिक बिमारियां मन के विकार से उत्पन्न से होती हैं। मन को संयमित करने के लिए ध्यान जरूरी है। ध्यान के माध्यम से इन बिमारियों पर काबू पाया जा सकता है। वर्तमान में अत्याधुनिक मेडिकल साइंस भी यही बात कह रहा है। भय, मानसिक अवसाद, उदासीनता के बीच स्वस्थ मन के साथ कैसे रहें योग यह बताता है।

शरीर और मन के बीच की कड़ी है श्वास
माननीय कुलाधिपति डॉ.विजय धस्माना ने कहा कि शरीर और मन के बीच की कड़ी है श्वास। स्वस्थ शरीर के लिए जरूरी है मन का शांत होना। मन को शांत करने के लिए जरूरी है ध्यान। मन के शांत होने से सकारात्मक ऊर्जा हमारे भीतर रहेगी। ध्यान करने में समय जरूर लगता है, लेकिन बेहद आसान है। रोजाना दो बार जरूर ध्यान करें।

वहीं, कार्यशाला के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए एसआरएचयू के डॉ.प्रकाश केशवया ने कहा कि योग व ध्यान के लिए उम्र की कोई बाध्यता नहीं है। बुजुर्ग लोगों को भी योग व ध्यान करना चाहिए। अगर हम छात्र जीवन से ही योग व ध्यान की आदत डालें तो पूरे जीवन में हम शांति, प्रेम, सेवा जैसे भावों अनुभव कर सकते हैं।

कार्यशाला के तीसरे सत्र को संबोधित करते हुए हिमालयन हॉस्पिटल की वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. रेनू धस्माना ने कहा कि एक संतुलित आहार में आमतौर पर 50 से 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 12 से 20 प्रतिशत प्रोटीन और 30 प्रतिशत वसा होता है। किसी व्यक्ति का संपूर्ण स्वास्थ्य और कल्याण अच्छे पोषण, शारीरिक व्यायाम और स्वस्थ शरीर के वजन पर निर्भर करता है। संतुलित आहार से हम अधिक ऊर्जावान महसूस करते और साथ ही इसका असर हमारी मनोदशा पर भी पड़ता है।

ध्यान करने से हैं यह फायदा
-योग करने से शारीरिक शांत मिलती है।
-ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को शांत करता है।
-मन में तनाव को भी कम करता है ध्यान
-रोग-प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करता है ध्यान।

-ध्यान करने से हमारी सोच की क्षमता विकसित होती है।

(परम् श्रद्धेय डॉ.स्वामी राम का जीवन परिचय)
डॉ.स्वामी राम : हिमालय का अद्भुत योगी, जो रोक सकता था अपने दिल की धड़कनें
भारत में ऐसे अनगिनत योगी और तपस्‍वी हुए हैं जिन्‍होंने विदेशों में भारतीय योग और आध्‍यात्‍म का डंका बजाया है। ऐसे ही कुछ योगियों में से एक थे डॉ.स्‍वामी राम। स्‍वामी राम ने विदेशों में भारतीय यौगिक क्रियाओं का प्रत्‍यक्ष प्रदर्शन करके दिखाया। स्‍वामी राम की गिनती भारत के ऐसे योगियों में होती है जिन्‍होंने पश्चिम में भारतीय संस्‍कृति, योग और शास्‍त्र का प्रचार प्रसार किया। डॉ.स्वामी राम ने दुनिया को बताया कि योग के माध्‍यम से बहुत‍ से ऐसे काम किए जा सकते हैं जिन्‍हें आधुनिक विज्ञान असंभव मानता है। उनकी आत्‍मकथा बहुत प्रसिद्ध है।

वर्ष 1925 में पौड़ी जनपद के तोली-मल्ला बदलपुर पौड़ी गढ़वाल में स्वामी राम का जन्म हुआ। किशोरावस्था में ही स्वामी राम ने संन्यास की दीक्षा ली। 13 वर्ष की अल्पायु में ही विभिन्न धार्मिक स्थलों और मठों में हिंदू और बौद्ध धर्म की शिक्षा देना शुरू किया। 24 वर्ष की आयु में वह प्रयाग, वाराणसी और लंदन से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद कारवीर पीठ के शंकराचार्य पद को सुशोभित किया।

गुरू के आदेश पर पश्चिम सभ्यता को योग और ध्यान का मंत्र देने 1969 में अमेरिका पहुंचे। 1970 में अमेरिका में उन्होंने कुछ ऐसे परीक्षणों में भाग लिया, जिनसे शरीर और मन से संबंधित चिकित्सा विज्ञान के सिद्धांतों को मान्यता मिली। जब उन्‍होंने अपने दिल में खून के बहाव को कुछ देर तक अपनी इच्‍छा के अनुसार रोक लिया तो डॉक्‍टर और वैज्ञानिक हैरान रह गए। 17 सेकेंड तक अपनी दिल की धड़कनों को रोक लिया। इतना ही नहीं उन्‍होंने यह भी दिखाया कि एक ही समय में दाहिने हाथ की हथेली का टेंपरेचर एक जगह ठंडा और एक जगह गर्म किया जा सकता है। दोनों बिंदुओं के बीच कम से कम 5 डिग्री सेल्‍सियस का अंतर नापा गया।

डॉ.स्वामी राम के इस शोध को 1973 में इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका ईयर बुक ऑफ साइंस व नेचर साइंस एनुअल और 1974 में वर्ल्ड बुक साइंस एनुअल में प्रकाशित किया गया। वह अपनी इच्‍छा मात्र से अल्‍फा, थीटा, डेल्‍टा ब्रेन वेव पैदा कर सकते थे। स्‍वामी राम भारतीय उपनिषद, दर्शन के विद्वान थे। लेकिन आधुनिक विज्ञान से भी उन्‍हें लगाव था। उनकी आत्‍मकथा ‘लिविंग विद हिमालयन मास्‍टर्स’ बहुत प्रसिद्ध है। इसमें उन्‍होंने अनेक चमत्‍कारिक संतों का उल्‍लेख किया है।

स्वास्थ्य सुविधाओं से महरुम उत्तराखंड में विश्व स्तरीय चिकित्सा संस्थान बनाने का स्वामीराम ने सपना देखा था। उन्होंने अपने सपने को आकार देना शुरू किया 1989 में। इसी साल उन्होंने गढ़वाल हिमालय की घाटी में हिमालयन इंस्टिट्यूट हॉस्पिटल ट्रस्ट (एचआईएचटी) की स्थापना की। ग्रामीण क्षेत्रों तक स्वास्त्य सुविधाओं के पहुंचाने के मकसद से 1990 में रुरल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट (आरडीआई) व 1994 में जौलीग्रांट में हिमालयन अस्पताल की स्थापना की। प्रदेश में डॉक्टरों की कमी को महसूस करते हुए स्वामी जी ने 1995 में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की। नवंबर 1996 में स्वामी राम ब्रह्मलीन हो गए। इसके बाद स्वामी जी के उद्देश्य व सपनों को साकार करने का जिम्मा उठाया ट्रस्ट के अध्यक्षीय समिति के सदस्य व स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) के कुलाधिपति डॉ. विजय धस्माना ने। डॉ.धस्माना की अगुवाई में ट्रस्ट निरंतर कामयाबी के पथ पर अग्रसर है। 2007 में कैंसर रोगियों के लिए अत्याधुनिक अस्पताल कैंसर रिसर्च इंस्टिट्यट (सीआरआई) की स्थापना की। 2013 में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए जॉलीग्रांट में स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) स्थापना की गई। इसके तहत विश्वविद्यालय की जॉलीग्रांट व तोली पौड़ी में सभी शिक्षण संस्थाएं संचालित की जा रही हैं। छात्र-छात्राओं को संस्थापक स्वामी राम जी के योग दर्शन की भी शिक्षा दी जाती है।

“’वास्तव में हमारे शरीर में जो कुछ घटित होता है वह हमारे सुक्ष्म शरीर यानी की मन में पहले ही घटित हो जाता है। इसलिए हम सब को अपने मन व उसकी अवस्थाओं (सुख व दुख) के ऊपर कार्य करने की नितान्त आवश्यकता है। कार्यशाला के बाद हम यह बेहद सरल तरीके से समझ पाए हैं कि हमारा शरीर, मन, सांस व आत्मा किस तरह से एक साथ जुड़े हुए हैं। आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए ध्यान कितना आवश्यक है। समाज में ध्यान करने के सम्बन्ध में बहुत सी भ्रांतियां है लेकिन कुलाधिपति डॉ.विजय धस्माना व उनकी टीम द्वारा बहुत ही सरल तरीके से ध्यान करने की विधि बताई। मैं सभी से आह्वान करुंगा कि मन को शान्त करने के लिए आप सब ध्यान अवश्य करें। जैसे शरीर को ठीक रखने के लिए सही खान-पान व नियमित व्यायाम आवश्यक है उसी प्रकार सांसों के लिए प्रणायाम व मन को शान्त रखने के लिए ध्यान अति आवश्यक है। हमारी सनातन संस्कृति में दी गई शिक्षाओं का पालन करने पर यह देश पुनः विश्व गुरु बन सकता है।“
-लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.), माननीय राज्यपाल

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