उर्मि नेगी लाई सुबेेरौ घाम का पार्ट टू, उत्तराखंडी सिनेमा का पहला प्रयोग

पलायन की विचलित करती तस्वीर-बथौं


विपिन बनियाल/अविकल उत्तराखंड


वर्ष 2014 में उर्मि नेगी की फिल्म सुबेरौ घाम रिलीज हुई थी। अब इस फिल्म का सीक्वेल यानी पार्ट 2 दर्शकों के सामने है । हिंदी सिनेमा में किसी फिल्म के पार्ट टू का प्रयोग भले ही पुराना हो, लेकिन उत्तराखंडी सिनेमा के 40 साल पुराने इतिहास में उर्मि नेगी ने यह पहली बार करके दिखाया है। उर्मि नेगी केे लिए सैल्यूट इस वजह से भी है कि पलायन की खौफनाक तस्वीर के बीच नारी संघर्ष की कहानी को वह बहुत मजबूती से सिनेमा के पर्दे पर लाई हैं।

उन्होंने न सिर्फ फिल्म की कहानी लिखी है, बल्कि निर्माता-निर्देशक होने की जिम्मेदारी के साथ ही साथ फिल्म की सबसे मुख्य किरदार गौरा को भी अपने अभिनय से जीवंत किया है। एक जवान से लेकर बूढ़ी औरत तक के किरदार में उर्मि नेगी ने गजब का अनिनय किया है। स्क्रीन पर तो उर्मि नेगी का जलवा दिखता ही है, स्क्रीन से बाहर भी एक-एक शॉट पर उर्मि नेगी की स्पष्ट छाप को आप महसूस कर सकते है।


वर्ष 2014 में उर्मि नेगी फिल्म सुबेरौ घाम लेकर सामने आई थीं, जिसका हिंदी में अर्थ है सुबह की धूप। यह नारी प्रधान फिल्म थी, जिसमे नशाखोरी से लड़ाई का ताना बाना बुना गया था। अब उर्मि नेगी बथौं सुबैरो घाम पार्ट टू के जरिये दर्शकों से मुखातिब है। गढ़वाली में हवा को बथौं कहा जाता है। फिल्म का शीर्षक बथौं रखनेे का उद्देेश्य एकदम साफ है। पलायन किस तरह हवा की माफिक सभी को बहाकर ले जा रहा है, फिल्म इसका संदेश देना चाहती है। पहाड़ की इस बड़ी समस्या के साथ नारी संघर्ष की दास्तान बथौं की सबसे बड़ी आवाज है।


बथौं के साथ सुबेरौ घाम फिल्म बहुत कुशलता से कनेक्ट हुई है। उर्मि नेगी ने बहुत सलीके से सारी चीजों का संतुलन बैठाया है। इस कोशिश में उन्हें नए और पुराने प्रतिभाशाली कलाकारों का साथ भी मिला है। हालांकि फिल्म की निर्माता-निर्देशक, लेखक और नायिका होने की वजह से सबसे बड़ी चुनौती उन्हीं के सामने थी। मगर वह चुनौतियों से पार पाने में कामयाब रही हैं। फिल्म तकनीकी दृष्टि से भी मजबूत है। खाली होते गांव का भुतहा अहसास विचलित करता है, तो बेबसी और लाचारी से भरे सीन आंखों को नम।

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इन स्थितियों के बीच, उर्मि नेगी को नरेंद्र सिंह नेगी का आभारी होना चाहिए, जिन्होंने फिल्म के लिए यादगार गीत-संगीत रचा है। सुबेरौं घाम में यदि नेगीदा बेहतर साबित हुए थे, तो इस फिल्म में उन्हें बेहतरीन कहा जाएगा। अनुराधा निराला की आवाज में लोरी के तो क्या ही कहने। फिल्म में दो खास मेहमानों की उपस्थिति ताजगी का अहसास कराती है।

पहले बात, चक दे इंडिया फेम मीर रंजन नेगी की। सुबैरो घाम फिल्म में भी मीर रंजन नेगी दिखाई दिए थे। इस बार उन्होंने ठुमके भी लगाए हैं। बथौं सुबेरो घाम पार्ट टू में प्रीतम भरतवाण को उर्मि नेगी ने अलग अंदाज में पेश किया है। प्रीतम जागर गाते हुए पर्दे पर दिखाई दिए हैं। इसके अलावा, उनके सुंदर जागर से ही इस फिल्म की शुरूआत हो रही है। बथौ के तमाम मजबूत पक्षों के बीच इसकी लंबाई पर सवाल है। फिल्म को और कसा जा सकता था, हालंाकि उर्मि नेगी ऐसा कतई नहीं मानती। उर्मि कहती हैं-कोई फिल्म ग्रंथ होती है, कोई महाग्रंथ। यह महागं्रथ है, इसलिए इसकी इतनी अवधि तो होनी ही थी।


फयोंली, सुबैरौ घाम के बाद बथौं उर्मि नेगी ने इस फिल्म के जरिये एक लंबी छलांग लगाने की कोशिश की है। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के एक बार फिर मजबूूती से दर्शन हुए हैं। इस फिल्म से संबंधित वीडियो यू ट्यूब चैनल धुन पहाड़ की में आप विस्तार से देख सकते हैं।

बाएं से लेखक विपिन बनियाल व उर्मि नेगी

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