मुलायम-विनोद बड़थ्वाल- भरोसे .. निष्ठा …दोस्ती व समर्पण की दास्तां

उत्तराखंड के कईं नेता मुलायम सिंह का साथ छोड़ गये लेकिन विनोद बड़थ्वाल आखिरी दम तक साथ देते रहे

अविकल थपलियाल/अविकल उत्तराखंड

देहरादून। इन दिनों  उत्तराखंड में मुलायम सिंह की मृत्यु, कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा पर हमले की साजिश, हरिद्वार पंचायत चुनाव व आरबीएस रावत की गिरफ्तारी के बाद पूर्व सीएम हरीश रावत के दो ट्वीट राजनीतिक और सामाजिक  गलियारों में सुर्खियां बटोर रहे हैं- लेकिन बात नेता जी और विनोद बड़थ्वाल के बेजोड़ रिश्ते और राजनीतिक निष्ठा व भरोसे की करते हैं…

मुलायम सिंह के निधन के बाद उत्तराखंड के सीएम धामी समेत अन्य बड़े नेताओं ने अपनी अपनी श्रद्धांजलि दी  है। लेकिन साथ ही मुलायम सिंह के कार्यकाल से जुड़े मुजफ्फरनगर कांड के अलावा अन्य निर्णयों पर भी बहस जोरों पर जारी है।

राज्य गठन से पहले यूँ तो समाजवादी पार्टी में उत्तराखंड के कई नेता जुड़े। विधायक भो बने। लेकिन समय के साथ साथ  ये नेता दूसरे दलों में शामिल होते चले गए। इनमें पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह भंडारी,  बर्फियालाल जुवांठा,
  विधायक रहे अम्बरीष कुमार, रामसिंह सैनी, मुन्ना सिंह चौहान, सांसद राजेन्द्र बॉडी, मंत्री प्रसाद नैथानी, बलबीर सिंह के अलावा सूर्यकांत धस्माना, सुभाष शर्मा, गढ़वाल विवि के छात्र संघ अध्यक्ष भगवान सिंह पंवार व अनिल बहुगुणा आदि प्रमुख नाम है।

लेकिन विनोद बड़थ्वाल ने मुलायम सिंह का साथ कभी नहीं छोड़ा। उत्तराखंड आन्दोलन में जनता की भीषण नाराजगी व बहिष्कार तक झेलने वाले विनोद बड़थ्वाल आखिरी दम तक समाजवादी पार्टी का झंडा बुलंद किये रहे।

उत्तराखंड में सपा की कमजोर राजनीतिक स्थिति को बुझते हुए भी विनोद बड़थ्वाल पार्टी के लिए काम करते रहे। 2016 अप्रैल में विनोद बड़थ्वाल के निधन के बाद तत्कालीन सीएम हरीश रावत ने कहा था कि उन्होंने कई बार बड़थ्वाल भाई को कांग्रेस में आने का निमंत्रण दिया था। लेकिन वो मुलायम सिंह को नहीं छोड़ सके। अगर वे समाजवादी पार्टी को छोड़ देते तो आज कांग्रेस सरकार में मंत्री होते।

उत्तराखंड गठन के बाद जिस तरह विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं ने रातों रात अपनी निष्ठा बदली है। वहीं विनोद बड़थ्वाल नेता मुलायम सिंह के बगलगीर बने।

सपा में रहते हुए विनोद बड़थ्वाल को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। सपा छोड़ने से जुड़े हर सवाल पर विनोद बड़थ्वाल का हर बार यही जवाब होता था कि वे नेता जी का भरोसा नहीं तोड़ सकते।

राज्य गठन से पहले 1989 में मुलायम सिंह ने युवा विनोद बड़थ्वाल को उत्तर प्रदेश निर्यात निगम का अध्यक्ष बना कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया। जब जब मुलायम सिंह सत्ता में रहे  तब तब विनोद बड़थ्वाल को दायित्वों से नवाजते रहे। यही नहीं, एक बार विधानपरिषद व एक बार राज्यसभा का टिकट भी दिया।

इसके अलावा मुलायम सिंह ने उत्तरकाशी के विधायक बर्फियालाल जुवांठा को पर्वतीय विकास मंत्री बनाया। पौड़ी के नरेंद्र सिंह भंडारी को भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था।

मुलायम सिंह यादव ने 1994 की शुरुआत में उत्तराखंड राज्य गठन को लेकर पार्टी स्तर पर विनोद बड़थ्वाल कमेटी व सरकारी स्तर पर कैबिनेट मंत्री रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में कौशिक समिति का गठन किया। जनता की रायशुमारी के लिए अखबारों में विज्ञापन भी प्रकाशित करवाये। इन दोनों समितियों ने उत्तराखंड के विभिन्न इलाकों में जाकर जनता के सुझाव भी लिए।

इन दोनों समितियों की सिफारिश के बाद तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने यूपी की विधानसभा में अगस्त 1994 में उत्तराखंड राज्य निर्माण विधेयक पास कर केंद्र सरकार को भेजा। यही नहीं, गैरसैंण में मिनी सचिवालय की घोषणा भी की गई।

इस बीच, मुजफ्फरनगर ,खटीमा, मसूरी व अन्य इलाकों में पुलिस की बर्बरता और फिर लगे कर्फ्यू ने मुलायम सिंह और उनकी पार्टी को उत्तराखंड में खलनायक बना दिया। गुस्सायी जनता मुलायम से जुड़े नेताओं के विरोध में सड़कों पर उतर गई।

राज्य गठन के समय उत्तराखंड की अंतरिम विधानसभा में समाजवादी पार्टी  के विधायक अंबरीश कुमार, राम सिंह सैनी व मुन्ना सिंह चौहान थे। लेकिन बाद में इन समेत अन्य पार्टी नेता मुलायम सिंह का साथ छोड़ते चले गए। हालांकि, मुलायम सिंह की दो पुत्र वधु डिंपल व अपर्णा मूल रूप से उत्तराखंड की ही है। लेकिन फिर भी सपा उत्तराखंड में पिछड़ती चली गयी। अलबत्ता एक बार 2004 में सपा ने हरिद्वार लोकसभा का चुनाव जीत कांग्रेस व भाजपा को झटका अवश्य दिया था।

समय बीतते बीतते उत्तराखंड में सपा के प्रमुख नेता कांग्रेस व भाजपा की ओट में चले गए। लेकिन विनोद बड़थ्वाल कांग्रेस के निमन्त्रण के बावजूद मुलायम सिंह के साथ ही डटे रहे। राज्य गठन के बाद सपा के लगातार छीजते वोट प्रतिशत से यह साफ था कि विनोद बड़थ्वाल कभी भी विधायक नहीं बन सकेंगे। इस कडुवी सच्चाई के बावजूद बड़थ्वाल नेता जी के साथ ही बने रहे।

हालांकि, हेमवती नन्दन बहुगुणा के खास समर्थक होने के बावजूद पूर्व सीएम विजय बहुगुणा से भी विनोद बड़थ्वाल के पारिवारिक रिश्ते रहे। बहुगुणा भी विनोद को कांग्रेस में लाने में अहम भूमिका निभा सकते थे। लेकिन बड़थ्वाल ने सपा के अलावा कोई दूसरी गली में जाना मंजूर ही नहीं किया।

2012 में यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार आने पर सीएम अखिलेश ने विनोद बड़थ्वाल को सरकारी कुर्सी सौंपते हुए मंत्री पद का दर्जा दिया।

इस बीच, 12 अप्रैल 2016 को सपा नेता विनोद बड़थ्वाल के निधन के बाद उनकी पत्नी आभा बड़थ्वाल को उत्तर प्रदेश सरकार में सम्मनजनक कुर्सी दी गयी.. रिश्ते निभाने वाले मुलायम सिंह ने विनोद बड़थ्वाल के निधन के बाद उनकी कुर्सी पत्नी आभा बड़थ्वाल के हवाले कर दी ..

आज नेता जी मुलायम सिंह यादव व विनोद बड़थ्वाल इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन पल पल बदलती राजनीति के मौसम में इन दोनों का एक दूसरे के प्रति भरोसा व निष्ठा की कहानी राजनीति के पन्नों पर हरदम फड़फड़ाती रहेगी…सादर नमन…

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