विभिन्न जन संगठनों ने यूसीसी के विरोध में मार्च किया

राज्यपाल को सम्बोधित ज्ञापन में कहा, जन विरोधी यूसीसी कानून को रद्द करें

अविकल उत्तराखंड

देहरादून । दीन दयाल पार्क पर विभिन्न जन संगठनों एवं विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों ने प्रदर्शन करते हुए यूसीसी कानून को महिला व जन विरोधी  बताते हुए गैर संवैधानिक करार दिया।

वक्ताओं ने कहा कि इस कानून द्वारा हर नागरिक की निजता पर हमला किया गया है और ख़ास तौर पर महिलाओं की सुरक्षा और आज़ादी का गंभीर हनन होगा।

सरकार एक तरफ महिलाओं के नाम पर ऐसे कानून ला रही है और दूसरी तरफ महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाये गए सारे व्यवस्थाएं को कमज़ोर कर रही है। 

इसके अतिरिक्त इस कानून द्वारा जाती एवं धर्म आधारित हिंसा और नफरत को भी बढ़ावा मिलेगा।  प्रदर्शनकारियों ने पार्क पर धरने देने के बाद  जिलाधिकारी कार्यालय तक जुलुस निकाल कर सिटी मजिस्ट्रेट को महामहिम राज्यपाल के नाम सम्बोधित ज्ञापन भी सौंपा।

कार्यक्रम में उत्तराखंड महिला मंच की कमला पंत, निर्मला बिष्ट, चन्द्रकला, पद्मा घोष, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के जिला सचिव शिव प्रसाद देवली एवं महानगर सचिव अनंत आकाश; भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के अशोक शर्मा; समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष अतुल शर्मा; उत्तराखंड नुमाइंदा संगठन के याकूब सिद्दीकी; चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, मुमताज़, सुनीता देवी इत्यादि, SFI के राज्य सचिव हिमांशु कुमार, सीटू के जिला सचिव लेखराज, तंजीम ए रहनुमा ए मिल्लत के लताफत हुसैन, क्रन्तिकारी लोक अधिकार संगठन के भोपाल एवं नासिर, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की नीता, सर्वोदय मंडल के डॉ विजय शुक्ला व अन्य लोग शामिल रहे। 

राज्यपाल को सम्बोधित ज्ञापन

सेवा में, 

महामहिम राज्यपाल

उत्तराखंड सरकार

महामहिम,

हम उत्तराखंड राज्य के विभिन्न जन संगठनों एवं विपक्षी दलों के प्रतिनिधि आज देहरादून में इसलिए इकट्ठे हुए हैं, क्योंकि प्रदेश सरकार द्वारा लागू हुआ यूसीसी कानून महिलाओं की सुरक्षा एवं आज़ादी, हम सबके मौलिक अधिकार और हमारे संविधान के मूल्यों का हनन करता है।  क्योंकि आप इस राज्य में संविधान के गार्जन हैं, हम कुछ बिंदुओं को आपके संज्ञान में लाना चाह रहे हैं:         

  • इस कानून द्वारा ख़ास तौर पर महिलाओं की सुरक्षा, स्वतंत्रता एवं निजता पर हमला होगा।
  • इस कानून में शादी का पंजीकरण न करना अपराध बनाया गया है। पंजीकरण के बाद भी ज़िन्दगी भर हर व्यक्ति को सारी निजी जानकारी जैसे ईमेल, फ़ोन, पता, बच्चों की विवरण, इत्यादि को अपडेट करना होगा। इससे आम जनता को परेशान कर उनकी निजता पर भी हमला करने की बात है। इसके अतिरिक्त अगर इस डेटाबेस को हैक भी हो सकता है, फिर कोई इस जानकारी का इस्तेमाल कर अपराध करेगा, तो उसके लिए ज़िम्मेदार कौन रहेगा?
  • इस कानून द्वारा कौन कहाँ रह रहे हैं और किसके साथ, यह सारी जानकारी सरकार के पास होगी। इससे सबसे ज्यादा खतरा महिलाओं को होगा। हर महिला की निजी जानकारी सरकारी अधिकारीयों एवं सत्ताधारी दल के संगठनों के पास होगी। 

–  महामहिम, अंतर जातीय, अंतर धार्मिक विवाहों को ले कर उत्तराखंड में वैसे ही अपराध बढ़ोतरी पर हैं। ऐसे रिश्तों के बहाने लोगों की हत्या की गयी है।   इससे ऐसे गुंडागर्दी को और बढ़ावा मिलेगा। 

  • महामहिम, हमारे संविधान में स्पष्ट है कि कोई भी व्यसक अपने इच्छा के अनुसार कहीं पर भी रह सकते हैं और किसी के साथ भी रिश्ता बना सकते हैं ।  इस कानून की वजह से चाहे रिश्ता  “लिव इन”  हो या शादी हो, उन सब के बारे में रजिस्ट्रार से ले कर पुलिस और माँ पिता तक जानकारी होगी।  यह हमारी सबकी निजता पर हमला है। 
  • यह कानून समान भी नहीं है।  इससे अनुसूचित जनजातियों को छोड़ दिया गया है।  इसके आलावा एक ही राज्य के अंदर कानून बनने से उत्तराखंड के बाहर रहने वाले उत्तराखंडियों पर उनके निवासी क्षेत्र के स्थानीय कानूनों और इस कानून भी एक साथ में लागु होंगे जिससे असमंजस पैदा हो सकता है।
  • इस कानून द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के परम्पराएं में जो महिला हित वाले सिद्धांत हैं – जैसे वसीयत पर सीमायें –  को भी इस कानून द्वारा खत्म कर दिया गया है।  वैसे ही उनके कुछ धार्मिक परम्पराओं को अपराध बनाया गया है जबकि उनमें से ऐसे भी प्रावधान है जो महिलाओं के हित में हैं। 
      
    –  महामहिम, इसके साथ साथ इस प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों एवं व्यवस्थाओं को कमज़ोर कर दिया गया हैं। घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 – जिसके अंतर्गत दोनों शादी में रहने वाली महिलाएं एवं “लिव इन” रिश्तों में रहने वालों को भी सुरक्षा मिलती है, इसपर अमल करने के लिए न कर्मचारी हैं और न ही कोई ठोस व्यवस्था। इसपर युद्धस्तर पर कदम उठाना ज़रूरी है।      
  • इसके अतिरिक्त राज्य में लगातार महिलाओं पर हो रहे उत्पीड़न और अपराधों को धार्मिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि इस प्रकार के अपराधी हर समुदाय में हैं। इन नफ़रती प्रचारों से हमारे शांतिपूर्ण राज्य में हिंसा, दंगे, अपराधी सामाजिक तनाव बढ़ रहा है।

इन सारे बातों को ध्यान में रखते हुए हम आपसे निवेदन करना चाहेंगे कि इस कानून को रद्द किया जाये और उसकी जगह में महिलाओं के हक़ों एवं सुरक्षा के लिए बनायी गयी व्यवस्थाएं एवं क़ानूनी प्रावधानों को सख्ती से अमल किया जाये। 

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