फल उत्पादन में अव्वल उत्तराखंड के लोग खा रहे हिमाचल-कश्मीर के फल
आकड़ों की बाजीगरी पर पलायन आयोग की रिपोर्ट
उत्तराखंड नाशपाती, आड़ू, पुलम और खुबानी उत्पादन में देश में पहले स्थान पर
सर्वाधिक अखरोट पैदा करने वाला उत्तराखंड देश का दूसरा राज्य
उत्तराखंड के बाजारों में बिक रहे हैं हिमाचल प्रदेश और कश्मीर के फल
अविकल उत्त्तराखण्ड
देहरादून। आजकल बाजार में फल बेचने वाले जोर जोर से हांक लगा रहे हैं कि कश्मीर का सेब ले लो,,,हिमाचल के सेब ले लो,,बबुगोसा ले लो। जब पूछो की उत्त्तराखण्ड का सेब नहीं है तो वे कहते है कि किन्नौर का माल है। यानी अपने घर का सेब कहाँ और किधर बिक रहा। कुछ पता नही।
उत्तराखंड, नाशपाती, आड़ू, पुलम और खूबानी उत्पादन में देश में पहले तथा अखरोट उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। जबकि, हकीकत यह है कि उत्तराखंड के बाजारों में हिमाचल प्रदेश और कश्मीर के फल बिक रहे हैं।
उद्यान विभाग के वर्ष 2015-16 के फल उत्पादन के आंकड़ों के अनुसार राज्य में नाशपाती 78778 मेट्रिक टन, आड़ू 57933 मेट्रिक टन, पुलम 36154 मेट्रिक टन , खूबानी 28197 मेट्रिक टन, अखरोट 19322 मेट्रिक टन तथा सेब 51940 मेट्रिक टन पैदा हुआ। यानि कुल 175329.9 हेक्टअर क्षेत्रफल में 659094.15 मेट्रिक टन।
उद्यान विभाग के इन आंकड़ों में भी झोल नजर आ रहा है। दरअसल, उत्तराखंड के पांच पहाड़ी जिलों में 1200 मीटर की ऊंचाई तक कहीं-कहीं घाटियों में आम बीजू के पौधे और उससे ऊपर के क्षेत्रों में खेतों के किनारे और गधेरों में अखरोट के पौधे देखने को मिलते हैं। इससे अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में माल्टा, पहाडी नीम्बू और चूलु-खूबानी बीजू के पौधे देखने को मिलेंगे। यात्र सीजन, मई से अक्टूबर तक रास्ते में कहीं पर भी स्थानीय फल बिकते हुए नहीं दिखाई देते। कुमाऊं मण्डल में भवाली, गर्मपानी, रानीखेत और कुछ अन्य स्थानों में जरूर स्थानीय फल बिकते हुए दिखाई देते हैं। द्वाराहाट व चैखुटिया क्षेत्र में गोला नाशपाती का उत्पादन होता है, लेकिन यहां भी काश्तकारों को इसका अच्छा भाव नहीं मिलता है।
उत्तराखंड में नाशपाती, आड़ू, पुलम और खूबानी के बहुत कम बाग हैं। उत्तराखंड के बाजार में हिमाचल प्रदेश और कश्मीर की मैक्स रैड और रैड बबूगोसा प्रजाति की नाशपाती बिकती है। यही स्थिति प्लम और आडू की है। अखरोट का भी राज्य में कोई बाग नहीं है। पिथौरागढ़, चमोली, पौड़ी, देहरादून और उतरकाशी जिले के कुछ क्षेत्रों में ही थोड़े-बहुत अखरोट के पौधे दिखाई देते हैं। अखरोट के कलमी पौध और बीज हिमाचल प्रदेश कश्मीर से मंगाया जाता है।
सेब के पुराने बाग खत्म हो चुके हैं। नए बाग लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन गलत नियोजन और क्रियान्वयन में पारदर्शिता न होने के कारण बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिल पा रही है। उत्तरकाशी, देहरादून, टिहरी, पिथौरागढ़, तथा चमोली जिलों के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब का अच्छा उत्पादन हो रहा है। इन क्षेत्रों में नए बाग भी विकसित हुए हैं। नैनीताल जिले के रामगढ़ क्षेत्र में अधिकतर कृषकों ने सेब के पुराने पेड़ हटाकर आड़ू, पुलम और नाशपाती के पेड़ लगाए हैं, जिनसे अच्छा उत्पादन मिल रहा है।
राज्य सरकार, वर्ष 2005 से उद्यान विभाग को राजस्व विभाग की मदद से फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े एकत्रित कर निदेशालय भेजने को कह रही है, लेकिन उद्यान विभाग ने 15 वर्ष बाद भी फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए।
उद्यानिकी विशेषज्ञ डा. राजेंद्र कुकसाल का कहना है कि गलत नियोजन और क्रियान्वयन में पारदर्शिता न होने के कारण फलों के उत्पादन का क्षेत्रफल उतना नहीं बढ़ता जितना विभाग की प्रगति आख्या में दर्शाया जाता है। योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ। राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर योजनाओं में सुधार ला सके।
बागवानी, पलायन आयोग की रिपोर्ट, plss clik
करोड़ों खर्च करने के बावजूद पौड़ी-टिहरी में घटा फल उत्पादन क्षेत्र
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