शिव का श्रीराम सेंटर

दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार विवेक शुक्ला

शिवनाथ प्रसाद के नाम से हो सकता है कि आप परिचित ना हो। पर ये असभंव है कि आप उनके डिजाइन किए श्रीराम सेंटर से प्रभावित ना हो।
श्रीराम सेंटर  को दूर से ही देखकर समझ आ जाता है कि इसका रिश्ता कला के संसार से होगा। ये ही किसी आर्किटेक्ट के काम की पहचान होती है कि वह जिस बिल्डिंग का डिजाइन बनाए उसमें बाहर से ही झलके कि इसका उपयोग किस लिए होता है।



शिव की इमारतों में आधुनिकता के दर्शन होते है। उनकी डिक्शनरी में जालियों और छज्जों के लिए स्पेस नहीं है। इस लिहाज से वे लुटियन स्कूल से बाहर निकलते हैं। वे ईंटों पर सीमेंट के लेप से बचते हैं। ये आप उनकी दो अन्य कृतियों क्रमश: अकबर होटल और तिब्बत हाउस में भी देखेंगे।

श्रीराम सेंटर के लिए चालू साल दो वजहों से खास है। पहला, ये अपनी 70 वर्ष की यात्रा पूरी कर रहा है। इसका मूल नाम इंडियन नेशनल थिएटर था। इसने दिल्ली में रंगमंच आंदोलन की नींव रखी थी।दूसरा, श्रीराम सेंटर की इमारत को बने आधी सदी हो गई है। ये 1969 के बिल्कुल अंत में बनी और 1970 के आरंभ से ही यहां रंगमंच,नृत्य और संगीत की गतिविधियां चालू हुईं।

शिव ने श्रीराम सेंटर का डिजाइन अद्वितीय बनाया। इसकी ग्राउंड फ्लोर और पहली मंजिल को गोलाकार रखा। शेष भाग को छह खंभों से खड़ा किया। यहां का रंगमंच वाला क्षेत्र भी गोल है, रिहर्सल वाला भाग आयताकार रखा है।

शिव श्रीराम सेंटर के थिएटर और स्टेज पर काम करते हुए भारतीय रंगमंच के पुराण पुरुष इब्राहिम  अल्काजी से लगातार चर्चाएं किया करते थे। शिव प्रयोगवादी थे। लखनऊ में जन्में और अमेरिका में शिक्षित शिव के काम पर फ्रांस के आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए का असर साफ मिलता है।

उनकी डिजाइन की इमारतों का मूल स्वभाव और चरित्र चंडीगढ़ के चीफ आर्किटेक्ट कार्बूजिए के करीब है। शिव  और कार्बूजिए के संबंध गुरू द्रोणाचार्य और एकलव्य की तरह थे। शिव ने कार्बूजिए को अपने काम का हिस्सा बनाया। हालांकि उन्हें कार्बूजिए से आर्किटेक्चर की भाषा और बारीकियों को सीधे तौर पर सीखने का अवसर नहीं मिला था।

इस बीच, आईआईटी, दिल्ली की तमाम इमारतों पर ली कार्बूजिए का असर होना स्वाभाविक है क्योंकि इसका डिजाइन प्रो.जे.सी.चौधरी ने बनाया था। वे चंडीगढ़ के निर्माण के दौरान ली कार्बूजिए के सहयोगी थे। पर शिव भी अपने मित्र प्रो. चौधरी की तरह कार्बूजिए के असर से अपने को दूर नहीं रख सके।

लंबे समय तक  स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (एसपीए) में विजिंटिग टीचर रहे शिव अपने काम में हस्तक्षेप कतई स्वीकार नहीं करते थे। इसलिए वे 1980 के बाद अमेरिका चले गए थे। मतलब हमें फिर उनका यहां पर कोई काम नहीं मिलता।

उन्हें श्रीराम सेंटर का प्रोजेक्ट सुमित्रा चरतराम ने दिया था। सुमित्रा जी दिल्ली की कला और सांस्कृतिक जीवन की जान थी। उनकी चाहत थी कि दिल्ली में रंगमंच में दिलचस्पी रखने वालों को एक स्तरीय स्पेस मिले।
श्रीराम सेंटर से चंदेक कदमों की दूरी पर त्रिवेणी कला केन्द्र है। जब शिव को श्रीराम सेंटर के डिजाइन का जिम्मा मिला था तब तक त्रिवेणी को बने हुए पांच-छह साल हो चुके थे। उसे अमेरिकी मूल के भारतीय आर्किटेक्ट जोसेफ स्टाइन ने डिजाइन किया था।

शिव के जेहन में रहा होगा कि उनकी कृति त्रिवेणी से उन्नीस ना रहे। उन्होंने ये सिद्ध भी किया। सृजनशीलता की मिसाल इस अनूठी इमारत पर दिल्ली जितना चाहे गर्व कर सकती है।

आर्किटेक्चर के विद्यार्थियों के लिए इसका गहराई से अध्ययन करना अनिवार्य है। वे यहां पर लगातार आते हैं। बेशक, मंडी हाउस पर स्थित शिव नाथ प्रसाद के श्रीराम सेंटर को संसार की श्रेष्ठतम इमारतों की श्रेणी में रखा जा सकता है। शिव नाथ प्रसाद का 2002 में निधन हो गया था।

कलम के धनी वरिष्ठ व संवेदनशील पत्रकार विवेक शुक्ला कमोबेश हर मुद्दे पर अधिकार के साथ लिखते रहे है। शब्दों के चयन व धाराप्रवाह लेखन खास विशेषता रही है। देश के कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों की शोभा बढ़ा चुके विवेक शुक्ला जी दिल्ली में रहते हैं।

Total Hits/users- 30,52,000

TOTAL PAGEVIEWS- 79,15,245

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *