सल्ट चुनाव- चेले को पटखनी के चक्कर में नुकसान उठा गए गुरु

सल्ट की बारूदी सुरंग में हाथ जला बैठे हरदा

गंगा की नैया पार नही लगा सके हरदा

2022 के लिये चेहरे की वकालत कर रहे हरदा की रणनीति को लगा भारी झटका

पुराने शिष्य रणजीत रावत का टिकट काट सल्ट की जंग में उलझना भारी रणनीतिक चूक

विश्लेषण/अविकल थपलियाल/अविकल उत्त्तराखण्ड

देहरादून। कई चुनाव परिणाम ऐसा राजनीतिक व सामाजिक असर छोड़ जाते हैं जहां जीतने वाले की नहीं हारने वाले (ममता बनर्जी, नन्दीग्राम) की चर्चा ज्यादा होती है। देश भर में हुए ऐसे कई चुनावों में हारने वाला ज्यादा सुर्खियां बटोर जाता है। ऐसी ही चर्चा उत्त्तराखण्ड की सल्ट विधानसभा में हरीश रावत की (प्रत्याशी गंगा पंचोली की) हार को लेकर भी शुरू हो गयी है।

ये क्या हुआ..कैसे हुआ..क्यों हुआ…

वैसे तो सल्ट में कांग्रेस चुनाव लड़ रही थी। लेकिन गंगा पंचोली के चुनाव मैदान में उतरते ही यह जंग हरीश बनाम भाजपा के बीच सिमट गई। हरीश रावत का चेहरा सामने आते ही कांग्रेस के अंदर खलबली मची। हरीश की कैंडिडेट गंगा पंचोली को टिकट मिलते ही पार्टी की अंदरूनी कशमकश कई गुना बढ़ गयी।

सल्ट के इस खेल में हरीश रावत हार गए। 2022 की बड़ी जंग के लिए लगातार चेहरे की वकालत कर रहे हरीश रावत सल्ट के 20-20 के मैच में स्वंय को उलझा कर अपने ही एजेंडे पर कुल्हाड़ी मार बैठे।  सल्ट में मिली हार के बाद पार्टी का ही एक हिस्सा साफ कहने लगा है कि ये चेहरे की हार हुई है। हरीश रावत को सल्ट की लड़ाई में सामने आकर  डायरेक्ट फ्रंट नही खोलना चाहिए था।

सल्ट की जंग को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत भारी चूक भी कर गए। चूंकि, पूर्व में हरीश रावत सल्ट उपचुनाव में भाजपा को वाक ओवर देने की बात कर चुके थे। लेकिन फिर पुराने सिपहसालार रणजीत रावत या उनके पुत्र विक्रम रावत को टिकट मिलता देख दिल्ली एम्स में भर्ती हरीश रावत ने हाईकमान को गंगा पंचोली के लिए राजी कर लिया। हालांकि, इस राजनीतिक मूव से हरीश रावत के कालर कुछ समय के लिए अवश्य खड़े हो गए लेकिन यही रणनीतिक चूक बाद में हरदा को भारी पड़ गयी। जबकि एम्स में भर्ती कोरोना पॉजिटिव हरीश रावत को यह भी अंदाजा था कि इस बीमारी में वो गंगा की नाव किनारे लगाने सल्ट में डेरा नहीं डाल सकते।

चुनाव प्रचार में अपना सौ प्रतिशत नही दे पाएंगे। और हुआ भी यही। कोरोना से पार पाते हुए हरदा मतदान से सिर्फ 48 घण्टे पहले सल्ट पहुंचे। लेकिन तब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका था। टिकट कटने से नाराज पूर्व विधायक रणजीत रावत समर्थक सल्ट की पट्टी में गोला बारूद बिछा चुके थे। हरीश रावत पर व्यक्तिगत प्रहार कर सनसनी भी मचा चुके थे। हरदा व तंत्र-मंत्र वाली जो बात किसी को पता नही थी वो पूरा देश जान गया। और फिर 2 मई को हुए विस्फोट ने अहसास करा दिया कि इस भूमिगत चुनावी माइंस में कितनी शक्तिशाली बारूदी सुरंगे बिछी थी। सल्ट के इस विस्फोट से उठे धुएं के गुबार से निकलने के हरीश रावत को भगीरथ प्रयत्न करने होंगे।

चूंकि, हरीश रावत स्वंय को 2022 के लिए नये सिरे से तैयार कर रहे थे। लिहाजा सहानुभूति की लहर पर लड़ी जा रही सल्ट की जंग में स्वंय को इस तरह झोंक कर पार्टी नेतृत्व को भी नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया।हरीश रावत टिकट काटकर अपने पुराने व सबसे भरोसेमंद शिष्य रहे रणजीत रावत को अपने होने का अहसास तो करा गए लेकिन सल्ट में धधक रही बदले की आग में अपने हाथ भी जला बैठे। वो भी जीतने पर सिर्फ 10 महीने विधायकी के कार्यकाल की कीमत पर।

जानी…हम तुम्हें मारेंगे और जरूर मारेंगे, पर बंदूक भी हमारी होगी और गोली भी हमारी होगी और वह वक्त भी हमारा होगा

यह भी सभी को पता था कि सल्ट के लोकप्रिय भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना व उनकी पत्नी की मौत के बाद इलाके में जबरदस्त सहानुभूति लहर चल रही है। ऐसे में पूर्व की तरह कांग्रेस प्रत्याशी का जीतना बहुत मुश्किल है। हरीश रावत के सामने 2018 के थराली व 2019 के पिथौरागढ़ उपचुनाव की तस्वीर भी सामने थी। इन दोनों उपचुनाव में भाजपा विधायक मगनलाल शाह व कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत की मौत से उपजी सहानुभूति ही जीत का मुख्य कारक बनी।

इस सच्चाई के बाद भी हरीश रावत का सल्ट में प्रत्याशी चयन में व्यक्तिगत तौर पर उलझ जाना हैरानी का सबब भी बना। एक समय त्रिवेंद्र राज में सल्ट में वाकओवर देने की बात करने वाले हरीश रावत के लिए सल्ट की हार निजी हार मानी जा रही है। उनकी उम्मीदवार गंगा पंचोली पिछली बार से अधिक अंतर 4700 से हारी। तमाम भावुक अपील के बाद भी गंगा की नैया पार नहीं लगी…2022 की महाभारत के लिए चेहरे की मशाल उठाये हरीश रावत का सल्ट के छोटे से मोर्च पर पहले उलझना और फिर खेत हो जाना कम से कम उनकी भविष्य की राजनीति के लिए शुभ संकेत तो कतई नहीं कहा जायेगा…

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