श्रम बोर्ड का होगा स्पेशल ऑडिट,मंत्री हरक अपनी ही सरकार के निशाने पर

नवगठित श्रम बोर्ड ने कोटद्वार कार्यालय बंद किया

नवगठित बोर्ड की पहली बैठक में इस बात पर गहरी नाराजगी व आश्चर्य जताया गया कि 2017 से बोर्ड का ऑडिट ही नहीं कराया गया

नवगठित श्रम बोर्ड ने 38 फील्ड कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से हटाया

उत्तराखंड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड की पहली बैठक के ताजे फैसलों से मंत्री हरक की परेशानी बढ़ी

अविकल उत्त्तराखण्ड

देहरादून। त्रिवेंद्र कैबिनेट के मंत्री हरक सिंह रावत की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। उत्तराखंड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड की पहली बैठक में  सभी लेन देन स्पेशल ऑडिट कराए जाने का फैसला लिया गया। 2017 से बोर्ड का ऑडिट ही नही हुआ है।

बोर्ड के यह सख्त फैसले श्रम मंत्री हरक सिंह रावत के लिए एक बड़ा संकट माना जा रहा है। स्पेशल ऑडिट में बहुत मामलों के सामने आने की गुंजाइश है।  2016 में कांग्रेस की बगावत के सूत्रधार बने हरक सिंह रावत के लिए यह किसी बड़े शिकंजे से कम नहीं माना जा रहा है। सीएम त्रिवेंद्र रावत के इस कदम से कैबिनेट मंत्री हरक सिंह को गंभीर वित्तीय व शासकीय परेशानियों से दो चार होना पड़ेगा।

गौरतलब है कि हरक सिंह ,सचिव दमयंती रावत समेत सभी हरक समर्थकों को त्रिवेंद्र सरकार पहले ही बोर्ड से बाहर कर चुकी है। अब बोर्ड के ताजे फैसले वित्तीय गड़बड़ी की ओर साफ इशारा कर रहे हैं।

बीते शुक्रवार को बोर्ड के अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल की अध्यक्षता में नवगठित बोर्ड की बैठक में इस बात पर गहरी नाराजगी व आश्चर्य जताया गया कि 2017 से बोर्ड का ऑडिट नहीं कराया गया।

बोर्ड ने कोटद्वार कार्यालय को भी बंद करने का फैसला किया। यही नहीं वित्तीय नियमों के विपरीत बोर्ड और फील्ड में रखे गए 38 कर्मचारियों को भी तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया । गौरतलब है कि हरक सिंह कोटद्वार से विधायक चुने गए।

श्रम मंत्री हरक सिंह रावत को अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद चर्चाओं में आए  नवगठित बोर्ड की पहली बैठक में बोर्ड की वित्तीय और प्रशासनिक मामलों का स्पेशल ऑडिट करने का फैसला किया गया।

आपको बताते चलें कि  2017 से पहले हल्द्वानी में श्रम बोर्ड कार्यालय का हर साल ऑडिट होता था।  बोर्ड में वित्त विभाग का एक भी अधिकारी व कर्मचारी नहीं होने पर भी सवाल उठे।  बैठक में तय किया गया कि बोर्ड में एक वित्त विभाग का अधिकारी तैनात होगा।

बोर्ड  ने की 38 कर्मचारियों की छुट्टी

नवगठित श्रम बोर्ड ने 38 कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से हटाने का फैसला किया। सृजित पदों के सापेक्ष रखे गए इन सभी कर्मचारियों की नियुक्ति में वित्त विभाग के नियमों का पालन नहीं हुआ। ये कर्मचारी देहरादून और कोटद्वार बोर्ड कार्यालय में फील्ड में तैनात हैं। सोमवार तक इसके आदेश जारी हो जाएंगे।

प्राइवेट कंपनी के वर्कर फेसिलिटी सेंटर भी बंद

बैठक में श्रमिकों के पंजीकरण के लिए खोले गए प्राइवेट वर्कर फेसिलिटी सेंटर बंद करने का भी निर्णय किया गया। तर्क यह दिया गया कि क्षेत्रीय कार्यालय और कॉमन सर्विस सेंटर(सीएससी) पहले से ही यह काम कर रहे हैं। पिछले बोर्ड ने भी सीएससी को ही यह काम सौंपने को कहा था। तय हुआ कि प्राइवेट कंपनी के सेंटर बंद किए जाएं। क्षेत्रीय कार्यालय में यदि कर्मचारियों की आवश्यकता हो तो उसकी अनुमति दी जाएगा।

प्रशासनिक फंड में भी गोलमाल

बोर्ड में पांच प्रतिशत प्रशासनिक फंड के नाम पर लाखों की धनराशि खर्च करने का मामला भी उजागर हुआ।  इस धनराशि की निकासी की भी जांच की जाएगी।










बैठक में किराये के भवन में चल रहे कार्यालय को लेकर भी सवाल उठे। यह तथ्य उजागर हुआ कि एग्रीमेंट के अनुसार, एक तल पर कार्यालय खोलने की अनुमति दी गई थी। लेकिन कार्यालय दो तलों में चल रहा है। पूरे भवन की बिजली का 50 बिल का भुगतान बोर्ड कर रहा है। एक अन्य कार्यालय भी भवन में है, उसका बिल भी बोर्ड के खाते से दर्ज हो रहा है। बैठक में यह जवाब नहीं मिला कि किसकी अनुमति दूसरे तल में दफ्तर चलाया गया।  बोर्ड का दफ्तर सरकारी भवन में शिफ्ट करने का फैसला लिया गया।

श्रमिकों के पंजीकरण में पारदर्शिता नहीं, सत्यापन होगा

बोर्ड में श्रमिकों के अब तक हुए पंजीकरण का सत्यापन करने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दो दिन पूर्व समीक्षा बैठक में नाराजगी जाहिर की थी कि पंजीकरण में पारदर्शिता नहीं अपनाई जा रही है। तय हुआ कि पंजीकरण केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुरूप होंगे। बैठक में इस बारे में सदस्यों से भी सुझाव मांगे गए हैं। इस पर अगली बोर्ड बैठक में इस पर चर्चा होगी।

अगस्त में 81.26 करोड़,  जमा रह गए 35 करोड़

श्रम मंत्री ने अगस्त 2020 में यह जानकारी दी थी कि कर्मकार बोर्ड के खातों में 81.26 करोड़ रुपये जमा है। लेकिन अब जानकारी सामने आई है कि बोर्ड के खाते में 35 करोड़ रुपये ही जमा है। बाकी धनराशि कहां गई है, इसे लेकर नवगठित बोर्ड भी हैरान परेशान है। फिलहाल 15 करोड़ की खरीदारी को लेकर जारी चेकों को पर रोक जारी रहेगी।

अहम मुद्दा: एफडी जमा है पर सर्टिफिकेट कहां है?

नवगठित बोर्ड के सामने एक बड़ा प्रश्न बैंकों में जमा धनराशि को लेकर भी है। सीए का कहना हैकि बैंकों को न तो ओपनिंग बैलेंस का सर्टिफिकेट दिया गया न क्लोजिंग बैलेंस का। डिपोजिट सर्टिफाई नहीं है। बैंकों में एफडी जमा है, लेकिन उसके सर्टिफिकेट कहां, किसी को नहीं मालूम। सितंबर 2020 के हिसाब से बैंकों में 35 करोड़ रुपये जमा हैं

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