.. बहुत देर कर दी हुजूर आते आते

किसान बिल वापसी पर कांग्रेस बोली,लोकतंत्र जीता..किसानों की जीत ..अहंकार हारा

उत्त्तराखण्ड भाजपा की ओर से दोपहर बजे तक कोई टिप्पणी नहीं

उत्त्तराखण्ड की तराई व मैदानी इलाकों की लगभग दो दर्जन विधानसभा सीटों पर किसान मतदाता की भूमिका अहम

अविकल उत्त्तराखण्ड

देहरादून।
पीएम मोदी की ओर से कृषि कानून वापस लेने के कई घण्टे बाद तक  उत्त्तराखण्ड भाजपा की ओर से किसी भी तरह की आधिकारिक टिप्पणी नही आई जबकि पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि यह लोकतंत्र और किसानों की जीत है और अहंकार की हार।

दरअसल, उत्त्तराखण्ड के उधमसिंहनगर, हरिद्वार व देहरादून जिले के मैदानी इलाकों में किसानों की ठीक ठाक संख्या है। किसान बिल के विरोध में कुमाऊं की तराई से लेकर हरिद्वार के मैदान तक भाजपा को भारी नाराजगी झेलनी पड़ रही थी। कुमाऊँ की तराई के सिख किसान तो रक्षा व पर्यटन राज्यमंत्री अजय भट्ट के दौरे पर विरोध दर्ज कर भाजपा को साफ संकेत दे चुके थे।

हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के तराई दौरे का विरोध करते हुए कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी भी दी। किसान नेता राकेश टिकैत ने भी दून व  तराई में दस्तक दे भाजपा को खुली चेतावनी दी थी। इस बीच, कुछ दिन पूर्व आप पार्टी के नेता भगवंत मान भी कुमाऊं की तराई के किसानों के बीच पहुंचे। भगवत मान इससे पहले भी सिख किसानों के बीच पहुंच केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध कर चुके है।

उत्त्तराखण्ड में फरवरी 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। नैनीताल-उधमसिंहनगर, हरिद्वार संसदीय क्षेत्र व देहरादून जिले से जुड़े मैदानी इलाके की लगभग दो दर्जन से अधिक विधानसभा सीटों पर किसान मतदाता निर्णायक स्थिति में है।

इन इलाकों में कृषि बिल के विरोध में उतरे किसानों को विपक्षी दल भी खुलकर हवा दे रहे थे। कांग्रेस की परिवर्तन यात्राओं में भी किसानों की भागीदारी ने भी भाजपा रणनीतिकारों की नींद उड़ा दी थी। खुफिया रिपोर्ट भी भाजपा के खिलाफ जा रही थी।

बहरहाल, गुरुपर्व पर प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों विवादस्पद कृषि कानून वापस लेकर देश के कई हिस्सों में बढ़ रहे विरोध को थामने की कोशिश की। लेकिन लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन के दबाव के बाद वापस लिए गए कृषि कानून के मुद्दे पर विपक्ष जीत व जश्न की मुद्रा में है।

उत्त्तराखण्ड का दलीय विपक्ष समेत कई अन्य संगठन भी किसान आंदोलन की जीत करार दे रहे है। यह संदेश भी साफ तौर पर चला गया कि उत्तर प्रदेश, पंजाब व उत्त्तराखण्ड के विधानसभा चुनाव में किसानों के गुस्से को कम करने के लिए पीएम मोदी ने कृषि कानून वापस लिए।

नाराज किसान अब भाजपा को कितना गले लगाएगा यह भी राजनीतिक पंडितों के लिए विश्लेषण का विषय होगा। लेकिन आंदोलन के दौरान शहीद किसानों में उत्त्तराखण्ड के किसानों के नाम भी शामिल है। ऐसे में नाराज किसानों को अपनी तरफ मोड़ना भाजपा के लिए काफी टेढ़ी खीर होगा।

इधर, उत्त्तराखण्ड भाजपा संगठन के मीडिया ग्रुप में दोपहर तक किसी बड़े नेता का कोई बयान नहीं था।  विपक्षी दल इसे किसान आंदोलन की जीतबता रहे हैं। भाजपा ने कृषि कानूनों को वापस लेकर बढ़ते किसान विरोध को थामने की कोशिश थोड़ा देरी से की। विपक्ष का भी कहना है कि बहुत देर कर दी हुजूर आते.. आते

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