कुसुम रावत
‘कमला की कहानी’। हां दोस्तों! आज मैं आपको महिला अधिकारों के लिए दुनिया भर में मशहूर एक शख्सियत अपनी प्रिय दोस्त कमला भसीन की छोटी सी कहानी जल्दबाजी में चलते-चलते सुना रही हूं।दुनिया में मशहूर महिला और मानवव अधिकारों की जबरदस्त हिमायती सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, जेंडर प्रषिक्षक, शायर, कहानीकार, गीतकार, कवियत्री और इंसानियत व मोहब्बत जिंदाबाद के बुलंद नारों को गढ़कर आसमान में छेद करने की कुव्वत रखने वाली दिल दिमाग से एक बेहद खुबसूरत और संजीदा इंसान हमारी प्रिय कमला भसीन इसी 25 सितंबर को 3 बजे सुबह दुनिया भर मे फैले अपने ‘कमला के काफिले’ को सूना कर चुपचाप कहीं बादलों की ओट में छिप सी गई।
मेरे दो दिन गहरी उदासी में बीते। अचानक सुन्न दिलो दिमाग से आसमान को ताकते हुए कमला दी! जिनको मैं प्रेम से हुजूर बोलकर संबोधित करती थी, की कई बार कही एक बात का ख्याल आया कि कुसुम दोस्त तू बहुत अच्छा लिखती है। कोई चार साल पहले वो बोलीं कि मेरी ख्वाहिश है कि आखिर में ‘कमला की कहानी’ कुसुम ही लिखेगी फुरसत से मेरे साथ बैठकर। मैं चौंकी उनकी बात पर कि मैं आपकी कहानी लिखूंगी। हां तू ही लिखेगी दुनिया की आम औरतों के लिए उनके ही दिल दिमाग और मिजाज के मुताबिक- एकदम सीधी सरल, सपाट बोली में और कुछ नारीवादी अंदाज में- कमला की कहानी। ऐसा कर तू गरमी में धर्मशाला आ जा जिस वक्त मैं और आभा भैया वहां होंगे। कुछ वक्त हमारे साथ भी बिता पहाड़ी लड़की। पर कमला भसीन की कहानी को गौर से सुनने और लिखने का वक्त कभी न आया। मैंने नहीं सोचा था कि मुझे यूं बरगद के पेड़ के माफिक विशाल व्यक्तित्व की धनी कमला भसीन की एक छोटी सी कहानी लिखनी होगी।
कमला दी! ये लिखते हुए मेरे हाथ कांप रहे हैं। मैंने नहीं सोचा था कि आपका सा जिंदादिल’ हिम्मती’ दयालु और सुंदर जज्बातों का गुब्बारा चुपचाप यूं आकाश में उड़कर बादलों की ओट में छिप जायेगा. कहीं वहीं जहां बैठ इस दुनिया का सृजनकर्ता तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे तमाम चाहने वालों के उमड़े जज्बातों को देखकर अपनी कमला नाम की सुंदर कृति को गढ़ने का श्रेय लेकर मंद-मंद मुस्करा रहा होगा। उस देश में जिसका पता ठिकाना कोई नहीं जानता कि इंसान कहां से आता है और कहां चला जाता है.
कमला दी! नहीं सोचा था कि 27 सालों की दोस्ती का सिलसिला यूं अचानक ठहर जायेगा। एक बात बोलूं सारी दुनिया में आपका महिला अधिकारों के लिए एक सजग,संवेदनशील,समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता का बुलंद परचम लहरा रहा है। लेकिन मैंने आपके अंदर बहुत गहरी पैठ बनाये एक अध्यात्मिक रोशनी को बार-बार महसूसा। पहली बार जब मैं आप और आभा दी के साथ एक महीने नेपाल की जेंडर एवं विकास कार्यशाला में साथ रही तो मैं चुपचाप आपको देखती थी। उस दौरान मैंने सही या गलत जो भी समझा पर बाद के सालों में लंबी बातचीतों और सानिध्य में मेरी बात की पुष्टि हुई कि आप बाहर से एक एक्टिविस्ट की जो दमदार भूमिका में उतरी हो वह ताकत,साहस, शब्द, करूणा और बेशर्त प्यार की बूंदे उसी गहरे समुद्र से छलक रही हैं।
उस रूहानियत को मैंने बार-बार महसूसा और लीवर कैंसर की पुष्टि हो जाने के बाद कोई महीना भर पहले जिस बिंदास आवाज में आपने कहा. ‘कुसुम कैंसर है। डाक्टर बोलते हैं बहुत ही कम उम्मीद है। फिर भी मैं लडूंगी आखिरी सांस तक हंसते.हंसते। मेरी मोहब्बत जिंदाबाद!’ मौत को सामने खड़ा यूं देखकर इस बेबाकी, बिंदासी और निडरता से आपने मुझसे आखिरी बात की।
कीमोथेरेपी की असहनीय पीड़ा के दौर में भी जो वीडियो हम सबने आपके देखे उसको महसूसकर कर मेरा 27 साल पुराना अहसास पुख्ता हुआ कि कमला में खुदाई नूर पूरी शिद्दत से छलक रहा है. आधी आबादी की समानता,गरिमा,स्वतंत्रता के हक और हित की पगडंडी में चल शाश्वत मानवीय मूल्यों की अनवरत खोज में। मैं खुशकिस्मत हूं कि आपका नजदीकी सानिध्य मिला।
आपसे और आभा दी से बहुत कुछ सीखा-समझा पर आपकी आखरी ख्वाहिश पूरी न कर सकी कि मैं आपके साथ धर्मशाला में काम करूं। चलो कोई बात नहीं. अगले जन्म में हम फिर मिलेंगे और साथ-साथ काम करेंगे। दुनिया में आधी आबादी ही नहीं पूरी आबादी में अमन-चैन- खुशहाली और हरियाली बोने के अभियान को जिंदा रखने को। खैर आपको अलविदा नहीं बार-बार सलाम! आपके तमाम दोस्तों और नारीवादी आंदोलन से जुड़े सभी लोगों की ओर से। क्योंकि इंसान कहीं नहीं जाता सिर्फ लबादों की अदला-बदली ही इस सृष्टि का नियम है। आपसे यूं बतियाते हुए मैं आपको कहीं अपने आस-पास ही मंडराते महसूस कर रहीं हूं। आप कहीं नहीं गई हो। क्योंकि मौत जीवन का सच नहीं है।
जीवन का शाश्वत सच इस जीवन में र्निविकार,र्निभय, र्निलिप्त भाव से अपना बेहतरीन रोल अदाकर हंसते-हंसते उसी ब्रहमांडीय ऊर्जा में विलीन हो जाना है। कमला की यही बेहतररीन अदाकारी दुनिया ने देखी और कुसुम ने महसूस की। यही कुसुम की ‘कमला की कहानी’ का सुंदर सार है।
खैर! नियति के इन अनबूझे सवालों का जवाब खोजने की हिम्मत भला मुझमें कहां है। वक्त ने यही सिखाया है कि ईश्वर से जो भी भला-बुरा मिलता है उसे चुपचाप धैय से स्वीकारने के सिवा हमारे हाथ में कुछ भी तो नहीं है ना! बस हमें अपने बेहतरीन प्रयास नहीं छोड़ने होंगे इस दुनिया को और सुंदर बनाने के। देश दुनिया को ‘आजादी’ का लोकप्रिय नारा देने वाली कमला भसीन मला के काफिले को छोड़कर कहीं नहीं गई है।
वह कहती थी कि हमको आजादी किससे चाहिए, महिला को पुरुष से नहीं बल्कि हमको आजादी चाहिए- दुनिया में व्याप्त अन्याय,शोषण गैर बराबरी से। आजादी के नारे को व्यापकता दे कमला का कहना था कि हमें आजादी चाहिए-भूख से, गरीबी से, बीमारी से, लाचारी से, बेरोजगारी से, अन्याय से, शोषण से, दमन से और हर उस बात-पंरपरा-मान्यता से जो एक इंसान को दूसरे इंसान से कमतर,बदतर,लाचार,कमजोर बनाती है। सैकड़ों नारे गढ़ने वाली कमला भसीन ने ‘आजादी आजादी आजादी हक है हमारा आजादी का नारा बुलंद किया। इस आजादी के नारे को एक ही वक्त 207 देशों में ‘वन बिलियन राईजिंग अभियान’ के तहत दुनिया भर में एक अरब औरतों ने एक साथ दोहराया जोकि अपने आप में एक रिकार्ड है।
कमला कहती थी कि ओ. बी. आर. यानि वन बिलियन राईजिंग मेरे कैरियर का एक बड़ा मुकाम है, जो 207 देशों में चला। इसे ई वैंसलर नाम की महिला ने शुरू किया। यह औारतों पर हिंसा के खिलाफ उमड़ता-घुमड़ता एक मजबूत अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया की लगभग 1 अरब औरतें हिंसा सहती हैं। हिंसा के खिलाफ जंग ही दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाई है। यह हिंसा ज्यादातर परिवारों के अंदर होती है। हम भारत में 1947 में आजादी से पहले हिंसा बर्दाशत कर सकते थे, पर आजादी के बाद तो हमारे संविधान ने औरतों व मर्द को बराबरी का हक दिया है, तो हम क्यों हिंसा सहें. मैंने इस कार्यक्रम में दक्षिण एशिया क्षेत्र का समन्वय किया। हमने सिर्फ औरतों पर हिंसा ही नहीं जातिवाद, संविधान की रक्षा, देश की रक्षा एवं अपने परिवारों की रक्षा का संकल्प लिया है।
मेरा मानना है कि परिवारों में बराबरी नहीं होगी तो कैसे समाज में औरतों को इज्जत मिलेगी। जब तक परिवारों में औरत का सम्मान नहीं होगा तब तक सड़कों में औरत को सम्मान कैसे मिलेगा, जब तक परिवारों में लोकतंत्र नहीं होगा तब तक सड़कों पर लोकतंत्र आ ही नहीं सकता। नारीवाद सिर्फ औरतों की बराबरी की बात नहीं करता, बल्कि समाज में व्याप्त हर तरह की गैरबराबरी को खत्म करने की वकालात करता है। मेरा मानना है कि गैर बराबरी पर टिका यह पितृसत्तात्मक ढ़ांचा मर्दो को ही नुकसान पहुंचा रहा है। मेरी सोच है कि हिंसा पुरुषों से उनकी इंसानियत को छीन रही है। कोई भी पुरुष तभी हिंसा करता है, जब उसका अंदरूनी इंसान मर चुका होता है। पुरुष तभी औरत पर हाथ उठाता है जब उसके अंदर का इंसान मर जाता है। मर्द किसी औरत से तभी यौन हिंसा करता है जब उसके विवेक का बैंड बज चुका होता है। किसी महिला का बलात्कार या उस पर एसिड फेंकना कोई इंसानी फितरत नहीं है। मेरा मानना है कि मर्द पैदायशी हिंसक नहीं होता। बल्कि वह हिंसक बनता हैं सामाजिक परिवेश में। मर्दो को हिंसा करने से रोका नहीं जाता। बल्कि औरत को रोका जाता है कि तुम बाहर मत जाओ पर मर्द को नहीं कहा जाता कि तुम बलात्कार मत करो या औरतों पर हिंसा नहीं करो। दोस्तों! बस यही बात हमको समझनी होगी।
कमला की खूबी थी कि इतना बड़ा नाम होने के बावजूद वो आम लोगों के बीच की ही एक आम औरत दिखती थी. अपनी जुबान, व्यवहार और काम-काज के तौर तरीकों से। यही उनकी खूबी थी कि वह बहुत सरल सहज और पारदर्शी थी। आम औरतों के दिल की बात करने वाली कमला भसीन की उर्दू जुबान कुछ लखनवी और कुछ पंजाबी टच लिए थी। अपने लोगों के बीच वो हिंदुस्तानी जुबान में ही बतियाना पसंद करती थीं। विदेश से तालीम लेने और संयुक्त राष्ट्र में काम करने के बावजूद भी वह अंग्रेजी के अंहकार से सर्वथा मुक्त थीं। वह दुनिया की मशहूर 50 महिला लेखिकाओं की जमात में शामिल हैं।
कमला दी के व्यक्तित्व की यह बड़ी ही विचित्र खूबी है कि उनके गीतों की धुनों पर मैंने घर गांव की चौपालों से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय मंचों पर बड़ी सहजता, सरलता से बदलाव की बयार की उम्मीद में पढ़े लिखे और निरक्षर हर उम्र की महिला-पुरुषों को मुक्त भाव से गाते-बजाते और नृत्य करते खुद देखा और सुना है। उनके गढ़े जादुई नारों पर बड़ी भारी भीड़ को एक स्वर में कदम ताल करते दुनिया ने देखा। क्या जादू था कमला की आवाज और उनकी कलम की ताकत में।
इसी ताकत ने ‘कमला की कहानी’ को अजर-अमर बना दिया महिला आंदोलन के इतिहास में। कमला का यह गीत हर महिला आंदोलन में जोश से गाया जाता रहा है और रहेगा कि ‘तोड़-तोड़ के बंधनों को देखो बहनें आती हैं, देखो लोगों देखो बहनें आती हैं, आएंगी जुल्म मिटाएंगी, वो तो नया जमाना लायेंगी।
कमला दी ने औरतों ही नहीं बच्चों और गरीब व कमजोर तबके के लिए गीत, कविताएं, कहानियां और किताबें लिखीं। दिल को गुदगुदाने वाले जोशीले तराने गाये, जिनको आज दुनिया में फैले उनके चाहने वाले चुपचाप गमगीन होकर गुनगुना रहे हैं। इन्हीं खूबसूरत तरानों के बीच महिला दोस्तों ने उनको फूलों और गीतों भरी शानदार विदाई दी. एक ऐसी खुशनुमा विदाई जो शायद ही कभी किसी को नसीब हुई हो।
कमला को महिला दोस्तों ने अपने कंधों पर चढ़ाकर सुंदर फूलों से सजाकरए गाते-बजाते जोरदार आखरी सलामी दी- जिसकी कमला भसीन सचमुच में हकदार थी। बाकी दुनिया भर में फैले कमला के काफिले ने चुपचाप अपनी ही जगहों में अपने ही दिलों में कमला को अलविदा कहा। कमला के बेहद सुन्दर गीत ‘मिलकर हम नाचेंगे गायेंगे, मिलकर हम खुशियां मनाएंगे, जिंदगी अपनी सजायेंगे को मैंने अपने महिला सामाख्या टिहरी के काम के दौरान बच्चों के बुरांश केंद्र की प्रार्थना बनाया था। बाद के दिनों में सिर्फ बच्चों ही नहीं किशोरियों, युवतियों और उम्र दराज औरतों को इस गीत और कई अन्य गानों के भावों पर मदमस्त होकर गाते.बजाते देखना मेरे लिए एक रोमांचक सफर सरीखा था।
सिर्फ टिहरी ही नहीं देश भर में फैला महिला सशक्तीकरण का सबसे बड़ा ‘महिला समाख्या कार्यक्रम’ अपनी इस बुनियादी प्रशिक्षक कमला भसीन का हमेशा कर्जदार रहेगा। दक्षिण एशिया की औरतों की जिंदगी को कमला भसीन ने बहुत प्रभावित किया। यह कमला की ही मावनीय नारीवादी तालीम का जादू था कि यहां एक मजबूत महिलावादी आंदोलन औरतो के हक में उभरा।
देश राज्य, वर्ग, जाति, धर्म, जेंडर की सीमाओं को तोड़ता सिर्फ महिला सामाख्या कार्यक्रम ही नहीं दक्षिण एशिया स्तर पर भी लाखों औरतों के जीवन में आये बुनियादी बदलाव की मैं खुद गवाह हूं। मैं नहीं सोचती कि महिला सामाख्या जैसा खूबसूरत और बुनियादी सरकारी कार्यक्रम दुनिया में कहीं जमीनी स्तर पर चला होगा, जिसने औरतों की जिंदगी को इस कदर छुआ। यह बात मैं नहीं बल्कि दुनिया भर में फैले अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े लोग बड़ी संजीदगी से कहते है।
आज कमला दी के ही बहाने मैं महिला सामाख्या कार्यक्रम से जुड़े तमाम ट्रेनर दोस्तों की एक लंबी चौड़ी टीम को सलाम करना चाहूंगी जिन्होंने आम औरतों की जिंदगी को छूने वाला इतना सुन्दर और बुनियादी कार्यक्रम इस देश को दिया। महिला आरक्षण के मसले पर कमला की साफ सोच थी कि “औरतों के सिर्फ संसद में आने से कुछ न होगा। जब तक नारीवादी औरतें महिला- पुरुष समानता के लिए आवाज न उठाएंगी तब तक हालत नहीं बदलेंगे। बलात्कार के मुद्दे पर औरत की इज्जत लुटने का हाहाकार मचाने वालों को एक बार मुस्कराते हुए कमला ने कहा था कि ‘मेरे दोस्तों क्यों तुम लोग औरत की इज्जत को सिर्फ उसकी ‘योनि’ में लाकर रख देते हो। बलात्कार से ईज्जत औरत की नहीं बल्कि मर्द की लुटती है। तुम जरा मेरी बात पर गौर करना। बड़ी हिम्मत चाहिए ऐसे दो टूक बोलने को। कमला की यही हिम्मत और लोगों के दर्द से जुड़ने का माद्दा कमला को बेमिसाल कमला भसीन बनाता है।
दोस्तों! आप 75 साल की हमारी जिंदादिल कमला भसीन को मिले हैं- आमिर खान के बनाये दूरदर्शन के मशहूर सीरियल ‘’सत्यमेव जयते’’ की एक कड़ी में दूरदर्शन के पर्दे पर महिलाओं और मानवता के हक में आवाज बुंलद करते। समाज में प्रचलित जेंडर भेद भाव को चुनौती दे महिला समानता की वकालात करने वाले नारीवादी आंदोलन की एक मजबूत कड़ी कमला भसीन भारत ही नहीं दुनिया भर में मशहूर थी। वह भारत ही नहीं, बल्कि दक्षिण एशियाई देशों में महिला आंदोलनों की प्रमुख धुरी थी। महिला आंदोलनों से जुड़े दुनिया भर के लोगों का मानना है कि कमला जैसी शख्सियत ना पहले कभी हुई है और ना आगे होने की संभावना है।
कमला शुरूआती महिलावादी आंदोलनकारियों में एक मानी जाती हैं। कमला भसीन ने 45 सालों तक महिला आंदोलन और मानवीय मूल्यों की पुरजोर वकालत गांव से संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर की। संसदीय समिति की रिपोर्ट- भारत में महिलाओं की स्थिति से 1975 में शुरू हुआ कमला भसीन का सफर बलात्कार कानून में संषोधन, दहेज हत्या के खिलाफ आंदोलन, कार्यस्थल पर यौन हिंसा की लड़ाई में मील का पत्थर बने राजस्थान के भंवरी भटेरी केस समेत कई बड़ी कहानियों की हमसफर कमला का सफर कभी रूका नहीं। कमला सच में एक योद्वा थी। बाहर से सख्त दिखने वाली कमला भसीन मानवीय मूल्यों की प्रबल पक्षधर थी। सुदूर गांव की औरतों से महानगरों की चकाचैंध में पली औरतों को एक सूत्र में बांधकर नारीवादी आंदोलन को संगठित करने में कमला की भूमिका के वजह से महिला आंदोलन में कमला बुनियाद के पत्थरों में एक थी।
कमला कहती थी कि कुदरत में कोई भेद नहीं है। समाज ने ही भेद.भाव पैदा किया है। वो जानती थी कि सामाजिक भेद-भाव की बुनियाद सदियों से हमारे दिलों में बैठे ‘पितृसत्तात्मक समाज’ की जड़ों को हिलाना आसान काम नहीं है। सो उन्होंने गैर बराबरी पर बोलने की शरूआत का एक सरल सहज रास्ता चुनकर लोगों के दिलों में पैठ बनाई।
कमला के शब्द पीड़ित, मजलूम औरतों और आबादी के दर्द से उपजे गीत हैं। वो उम्मीद जगाते हैं, हौसला पैदा करते हैं और ढ़ाढंस बंधाते हैं कि दोस्त मैं हूं ना तेरे साथ! गमगीन होना कमला की किताब में कहीं लिखा ही न था। कमला दी के जाने पर पूरा सोशल मीडिया कई दिनों से गमगीन है। हर कोई बड़ा.छोटा अपने हिसाब से अपनी प्रिय कमला को याद कर रहा है। मशहूर फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी ने कहा कि ‘’मुझे हमेशा से लगता था कि कमला भसीन अजेय है और वह अंत तक अजेय ही रही। कमला की अनुपस्थिति हमेशा महसूस की जायेगी।‘’
मेरा कमला दी से पुराना रिश्ता है। मैं 1994 में टिहरी बांध की नौकरी छोड़ महिला समाख्या से जुड़ी। मेरे जैसे वैज्ञानिक सोच के बंदे के लिए सामाजिक कार्यक्रम से जुड़ना एक अजीब इत्तफाक था। मुझे जेंडर भेद भाव की गहरी जड़ों की कोई खास समझ न थी। मैं अपने निर्णय पर हैरान परेशान थी। एक प्रशिक्षण के दौरान कमला और आभा भैया के सत्र में जब मैंने इन समझा कि ‘’नारीवाद महज महिला-पुरुष के बीच के भेद भाव की बात नहीं करता, बल्कि यह हर उस असमानता गैर बराबरी और अन्याय, शोषण के विरोध में आवाज बुलंद करने की हिमाकत करता है- जो किसी भी अमीर, गरीबए जाति, धर्म, वर्ग, लिंग, वर्ण के आधार पर दुनिया में कहीं भी किसी भी कोने में किसी कमजोर, कमतर और मजलूम बंदे को सहना पड़ता है. किसी भी गलत नीति, रीति या परंपरा के नाम पर।
मैं आज भी सिहर उठती हूं वो पल याद कर कि क्या रोमांच था उस प्रशिक्षण में। मुझे लगा इस कार्यक्रम से जुड़ने का मेरा निर्णय सही था। फिर मैंने पीछे मुड़कर न देखा। मैंने जिंदगी का असल आनंद इसी कार्यक्रम में लूटा। मैंने गांव और सीनियर स्तर पर जुड़ी कमला सरीखी सैकड़ों औरतों से बहुत कुछ सीखा। सीखने-सिखाने के इस दौर में कमला दी से दिल की दोस्ती हो गई।
मैंने महसूस किया कि कमला भसीन के नारीवादी खोल के अंदर एक बेहद सहिष्णु और दयालु इंसान की आत्मा बसती है। वो भगवान बुद्ध से बड़ी प्रभावित थी। वो कहती थी कि कुसुम तू मेरी सुरक्षा है तो मैं बड़ा हंसती थी। हमारी आखिरी मुलाकात देहरादून में हुई थी। तीन दिन बहुत अच्छा समय साथ बिताया। मैंने वादा किया था कि कोरोना के बाद हम धर्मशाला में मिलेंगे कमला की कहानी लिखने को। पर वक्त ने भी क्या कभी किसी को मौका दिया अपने मन का करने को।
कमला की कहानी लिख रही हूं- कमला की ही जुबानी.
कमला की कहानी बड़ी सपाट है। कमला भसीन बताती हैं कि. मेरी पैदाइश पंजाब की है। वह आज पाकिस्तान में है। सो मैं खुद को साउथ एशिया की मानती हूं। मैं सब मुल्कों को ही अपना मानती हूं। मेरी परवरिश राजस्थान के गांवों में हुई। 10वीं तक की पढ़ाई सरकारी स्कूलों में और बाद में सरकारी कालेजों और यूनिवर्सिटी में पढ़ा। मेरी खुशकिस्मती थी कि मुझे घर पर कभी रोका-टोका नहीं गया। मेरा ख्याल है कि उस जमाने में जेंडर भेद भाव शायद इतना था भी नहीं। मैं लड़कों के साथ कंचे खेल उनको हरा देती।
साइकिल भी बराबरी की चलाती। आज की तरह 90 प्रतिशत नबंर लाने का दबाव भी न था। ऐसे ही बड़ी हुई। यहां पढ़ाई कर जर्मनी चली गई समाजवाद पढ़ने। वहीं सरकारी नौकरी मिल गई. सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने की। काम करते-करते लगा क्यों न यही काम अपने मुल्क में करूं। वहां छोड़कर मैं राजस्थान आ गई। वहां की संस्था सेवा मंदिर से जुड़ी। तभी संयुक्त राष्ट्र से न्यौता मिला-स्वयं सेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को साउथ एशिया स्तर पर प्रशिक्षित करने का । यह मेरे दिल का काम था। मुझे सरहदों के पार उड़ने का मौका मिला। एक दूसरे को जानने, पहचानने, आपस में मिलवाने, एक दूसरे से रिश्ते कायम करने और सीखने-सिखाने का यह सुंदर न्यौता था। गरीबों और दलितों के साथ काम करते.करते मैंने महसूस किया कि गरीबों और दलितों में सबसे गरीब ‘औरत’ ही होती है। साथ ही समझा कि अल्पसंख्यकों में औरत ही सबसे ज्यादा गरीब और अल्पसंख्यक है। धीरे.धीरे मेरे अंदर एक संवेदनशील और सजग नारीवादी औरत पैदा होने लगी। और मैं महिलावादी आंदोलन के साथ मुखरता से जुड़ गई। फिर वह सफर कभी रूका नहीं और कमला का काफिला बढ़ता गया।
मेरे जीवन का सबसे खराब वक्त था जब मेरी 27 साल की बेटी मीतो अचानक खुदा के घर चली गई। वो आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ती थी। यह पल कभी मेरे दिल से दूर नहीं होता। मेरा 40 साल के बेटे छोटू सिंह को बचपन में टीका लगाने के दौरान हुए रिएक्शन से उसके दिमाग को नुकसान पहुंचा। वो पूरी तरह से लाचार हो गया। वो हाथ पैर नहीं चला सकता और न ही बोल सकता है। पर वो मेरी ताकत है। उसने मुझे सिखाया कि हर हाल में कैसे खुश होकर जिया जाता है। मेरे दिल पर यह दो कुदरत की बड़ी चोटें हैं। पर मैंने इसके बावजूद अपने दर्द को काम पर हावी न होने दिया।
सारी दुनिया की खुशियों को अपनी मानकर मैंने 27 साल संयुक्त राष्ट्र में काम किया- सरहरदों के पार लोगों के दिलों और मुल्कों को जोड़ने का। ऐसे काम का मौका हरेक को नहीं मिलता। मेरा मानना है कि यदि हमारे पड़ोस में अमन-चैन नहीं होगा तो कहीं कहीं भी शान्ति नहीं होगी। आम लोगों की तरक्की के मौके थम जायेंगे। इसलिए समाज की बुराईयों के खिलाफ हमको बात करनी ही होगी और हरेक के लिए तरक्कती व बराबरी के मौके खोजने को। हां यह बात कई लोगों को पसंद नहीं आती पर काम के दौरान कोई बहुत बड़ा प्रतिरोध मैंने नहीं झेला। हां घर में मेरे भाई अपनी पत्नियों को जरूर हंसकर कहते कि हमारी इस नारीवादी बहन से थोड़ा दूर रहना। मैं सोचती हूं कि मेरे जीते जी तो औरतों पर हिंसा नहीं थमेगी। इसके लिए बहुत लंबी यात्रा तय करनी होगी। मैं सिर्फ औरत और मर्द की गैर बराबरी की बात नहीं करती बल्कि समाज में अमीरी गरीबी, शुद्र-ब्राहमण, हिंदू-मुसलमान के बीच बराबरी की बात करती हूं। गैर बराबरी एक पितृसत्ता सामाजिक ढ़ांचा है। इसमें मर्द को बेहतर माना जाता है। इस ढ़ांचे में औरतों को निर्णय का हक नहीं। संसाधनों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं।
कमला दी पिछले 27 सालों में आपसे दोस्ती का जो रिश्ता बना वो साल-दर-साल मजबूत होता गया। मैं और आपका छोटा दोस्त विभु रावत उदास हैं। विभु ने साल दर साल भेजी आपकी किताबों का आनंद उठाया। 3 साल की उम्र से पढ़ी आपकी ‘’उल्टी सुल्टी मीतो’’ की कहानी उसकी पसंदीदा किताब है, जो आज भी उसने सहेजी है। आपकी भेजी हर किताब को वो बड़े गौर से पढ़ता है। हर साल आपकी भेजी चाकलेटों को मैंने और विभु ने प्रेम से खाया। विभु ने आपकी बीमारी की खबर सुन गेट वैल सून का गुलदस्ता भेज अपना बाल स्नेह जताया। टिहरी में आपके जाने की खबर अपनी मां से सुन वह फोन पर बोला अरे हमारी दोस्त कमला भसीन जी चली गईं। वो जानता था कि मैं उदास होंगी। सो इधर उधर की बात कर बहलाने की कोशिश कर रहा था। जब एक छोटा सा बच्चा आपको बिना मिले-जुले सिर्फ आपकी ढ़ेरों किताबें पढ़कर आपकी कमी महसूस कर रहा है, तो सोचो गैर बराबरी को खत्म करने को संघर्षरत दुनिया भर में फैला हजारों लाखों औरतों का ‘’कमला का काफिला’’ कितना उदास होगा। कमला की ‘’इंसाफ पसंद’’ विरासत को आगे बढ़ाने को कमला का काफिला तैयार हो चुका है, जो कमला के जुनून को और आगे बढ़ाऐगा वक्त-दर-वक्त। कमला के बीजों से कई और कमलाएं तैयार हो चुकी हैं। यही आपकी खूबी भी है और विरासत भी। आपका मशहूर शेर- ‘’रौंद सकते हो तुम फूल सारे चमन के, पर बहारों का आना नहीं रोक सकते।‘’ गैरबराबरी के ढांचे के लिए एक वैचारिक चुनौती है।
कमला दी! मैं ही नहीं नारीवादी आंदोलन और मानवीय मूल्यों के हिमायती हमेशा आपके कर्जदार रहेंगे। कमला की आधी अधूरी कहानी लिखते हुए मन बहुत उदास है। दोस्त! आपका सफर थमा नहीं है। आप हमेशा जिंदा रहोगे हम सभी की यादों में एक सुंदर बराबरी को लाने का हसीन ख्वाब बनकर। बस आप भी यूं ही खुश रहना, गाती बजाती रहना, लिखती रहना मोहब्बत के तराने। और खूब जोर से बुलंद नारे लगती रहना- मोहब्बत जिंदाबाद के।
हुजूर यही आखिरी बात आपने मुझसे कही थी. कुसुम मेरी मोहब्बत जिंदाबाद! हां कमला दी तुम्हारी ही ज़िन्दादिली से भरी-पूरी, हरी.भरी खास ‘कमलानुमा मोहब्बत जिंदाबाद।‘’ जाओ कमला दी! अपनी प्रिय रेड फरारी गाड़ी में अपने आखिरी सफर पर। आप हमेशा जिंदा रहोगी अपने गीतों, कविताओं, कहानियों, किस्सों और नारों में हर उस बंदे के दिल में जो अमन-चैन का हिमायती है। दुनिया जहान ने अपने-अपने हिस्से का पाथेय आपसे सीखा। मुझे अफसोस है कि आपको आखरी बार ना मिल सकी। आपको जिंदादिली के साथ देखा सो आपका जनाजा देखने का मन नहीं था। सो खुद को रोका। लेकिन आप हमेशा मुस्कराती रहोगी- ‘’कमला की बेहद सुन्दर टिकाऊ विरासत के साथ।‘’
आपको विभु और मेरा प्यार भरा सलाम!
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