पत्रकार त्रिलोक दीप-सादगी…विनम्रता व ज्ञान की त्रिवेणी

नामचीन पत्रकार त्रिलोक दीप के जन्मदिन पर विशेष

दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार विवेक शुक्ला की विशेष रिपोर्ट


त्रिलोक दीप को छात्र जीवन से ही दिनमान में पढ़ना शुरू कर दिया था। वे मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय विषयों पर लिखा करते थे। उनकी हरेक रिपोर्ट मुझे ज्ञानवर्धक लगती है। उन्हें पढ़कर एक दिशा और दृष्टि मिल जाती थी। उन्हें पहली बार देखने का सौभाग्य मिला 1984 में। मैं तब डी यू में था। दिनमान के दफ्तर में गया था।

दिनमान का दफ्तर दरियागंज में हुआ करता था। दिनमान के उस बड़े से संपादकीय हॉल में सिर्फ एक ही धीर-गंभीर सरदार जी बैठे हुए नजर आए। उनकी टेबल के आगे एक टाइप राइटर रखा हुआ था। बाकी किसी के पास टाइप राइटर नहीं था। वहां पर दिनमान में तब काम कर रहे दोस्तों ने बताया कि ये त्रिलोक दीप जी हैं। मैं तब उनसे मिलने का साहस नहीं जुटा पाया था। बस, अपने हीरो के दूर के दर्शन करके निकल लिया था। हालांकि आगे चलकर उनसे मित्रता हुई जब मुझे मीडिया की दुनिया में आने का मौका मिला। इस दौरान उनको पढ़ना लगातार जारी रहा।

त्रिलोक दीप पत्रकारिता को गुजरे साठ वर्षो से भी अधिक समय से आलोकित कर रहे हैं। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिखना सच में चुनौतीपूर्ण है। मेरी उम्र से अधिक समय से तो वे पत्रकारिता में हैं। इतने सच्चे और सतत लेखक अब आसानी से नहीं मिलते। उनकी कूटनीति, राजनीति, समाज, अंतरराष्ट्रीय विषयों पर लगातार पैनी नजर रहती है।

उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल के भारत को अखबारनवीस की नजरों से देखा और उस पर बेबाकी से कलम चलाई। वे दिनमान और फिर संडे मेल जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशनों में जिम्मेदार पदों पर रहे। उन्होंने दर्जनों नौजवान पत्रकारों को तराशा और गढ़ा। ना जाने कितने युवा पत्रकारों को नौकरी दी या दिलवाई। लेकिन, उन्होंने कभी दावे नहीं किए कि फलां-फलां पत्रकार उनका शिष्य है। हिंदी पत्रकारिता में मठाधीश पत्रकारों की भरमार है। ये दावे करते नहीं थकते कि उन्होंने किस-किस को नौकरी दिलवाई।

त्रिलोक दीप बोलते कम और सुनते अधिक है। मैंने उनके मुंहे से कभी किसी की निंदा करते नहीं सुना। व हरेक के लिए कुछ अच्छा ही बोल रहे होते हैं। वे वैकल्पिक सोच और विचारों का सम्मान करने वाले शख्स हैं। त्रिलोक दीप उन लोगों में नहीं हैं जो अलग राय रखने वालों से दूरी बना लेते हैं। वे मन और कर्म से लोकतांत्रिक हैं। उन्होंने सैकड़ों नौजवानों को पत्रकारिता की बारीकियों को बताया। वे त्रिलोक दीप को अपना आदर्श और संरक्षक मानते हैं।

त्रिलोक दीप के लिए कहा जा सकता है कि वे मौजूदा हिन्दी पत्रकारिता के शलाका पुरुष हैं। उन्होंने एक दर्जन से अधिक लोकसभा चुनावों को कवर किया। विधानसभा चुनावों की तो गिनती करना कठिन है। वे पाकिस्तान मामलों के गहन जानकार हैं। अनेक बार पाकिस्तान की यात्रा कर चुके हैं। उनका जन्म स्थान रावलपिंडी है। उनसे मेरा आत्मीय संबंध इसलिए भी बनता है क्योंकि मेरा परिवार भी देश के विभाजन के बाद रावलपिंडी से दिल्ली आया था। वे और मेरे पापा जी रावलपिंडी के डेनिस हाई स्कूल में पढ़े। उन्हें हमेशा इस बात को लेकर भी हैरत होती है कि मैं शुक्ला सरनेम वाला इंसान धारा प्रवाह पंजाबी कैसे बोल लेता हूं। मेरा परिवार उत्तर प्रदेश से पंजाब में जाकर बसा था। उनका परिवार देश के बंटवारे के बाद कुछ समय उत्तर प्रदेश में रहा।

त्रिलोक दीप हिन्दी पत्रकारिता में स्वैच्छिक रूप से आए। हालांकि उनकी मात़ृभाषा पंजाबी है। हिन्दी से उनका साक्षात्कार रायपुर के प्रवास के दौरान हुआ। देश के विभाजन के बाद उनका परिवार रावलपिंडी से रायपुर में जाकर बस गया था बारास्ता उत्तर प्रदेश के। वहां पर पढ़ते हुए ही उन्होंने स्थानीय अखबारों के लिए लिखना आरंभ कर दिया था।

एक तरह से कह सकते हैं कि उनकी पत्रकारिता की नींव रायपुर में 1950 के दशक के अंत में पड़ गई थी। वे डेस्क पर बैठने में कम यकीन करते हैं। उन्हें घटनास्थल पर जाकर लिखना रास आता है। उनकी खबरों, रिपोर्टों, इंटरव्यू वगैरह को पढ़कर पाठक को कुछ अनेक सूचनाएं मिलती हैं। ये ही तो पत्रकारिता है। वे अपने पाठकों को अपनी चमत्कारी लेखनी से तुरंत बांध लेते हैं। वे बोझिल और उबाऊ लेखक नहीं हैं।

मैं कुलदीप नैयर, त्रिलोकदीप और राजीव शुक्ला ( अब वे सियासत के संसार में हैं ) को एक ही श्रेणी में रखता हूं। ये खास इसलिए बनते हैं क्योंकि ये सब घुमक्कड़ रहे हैं। ये देश-विदेश की बार-बार यात्राएं करते हैं, आम और खास इंसानों से मिलते हैं। जो पत्रकार घूमता या जनता के बीच जाता नहीं, उसे पत्रकार कैसे कहें। श्रेष्ठ पत्रकार के बायो-डाटा में यह अवश्य लिखा होना चाहिए कि उसने अनेक देशों, प्रदेशों, शहरों,गांवों की खाक छानी । त्रिलोक दीप जी अमेरिका, रूस, पोलैंड, ब्रिटेन, पाकिस्तान समेत अनेक देशों में बार-बार जाते रहे । आजकल वे उन यात्राओं के वृत्तांत फेसबुक पर भी शेयर हैं तो पाठक उन्हें बड़े ही चाव से पढ़ते हैं। संस्मरण कितना भी विस्तृत हो जाए उसे रोचक और ज्ञानवर्धक बनाए रखने की कला उन्हें खूब आती है। मजा आ जाता है उन्हें पढ़कर।

दिनमान ने त्रिलोकदीप को अखिल भारतीय पहचान दिलवाई थी। यह हिन्दी की एक प्रमुख एवं पहली साप्ताहिक समाचार पत्रिका थी जिसे सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने आरंभ किया। इस पत्रिका ने हिन्दी को कई प्रतिष्ठित पत्रकार ही नहीं दिए बल्कि हिन्दी पट्टी में एक विचारधारात्मक ऊर्जा का भी संचार किया। इधर अज्ञेय ही उनको लेकर आए थे। दिनमान में नौकरी करने के लिए त्रिलोक दीप जी ने सरकारी नौकरी को छोड़ दिया था। वे दिनमान ज्वाइन करने से पहले राज्यसभा में अधिकारी थे। दिनमान ने तो त्रिलोक दीप की जीवन की धारा को ही बदल दिया ।

इधर उन्हें अज्ञेय, मनोहर श्याम जोशी,रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा, प्रयाग शुक्ल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जैसे हिन्दी पत्रकारिता और साहित्य के खास हस्ताक्षरों के साथ काम करने का अवसर मिला। इससे उनकी शख्सियत का विस्तार हुआ। उन्हें एक सरकारी दफ्तर के बंद और घुटनभरे माहौल से नया आकाश मिला छूने के लिए। यहां पर रहते हुए उन्होंने ज्ञानी जैल सिंह से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और बलराम जाखड़ से लेकर फणीशवरनाथ रेणु और पीलू मोदी वगैरह से मुलाकातें कीं। इन सब पर लिखा। पर लिखते हुए कभी पत्रकारिता के मूल्यों से समझौता नहीं किया। तब ये नहीं देखा कि ये हस्तियां इनकी परिचित हैं या करीबी है। जो कहना था उसे कहा।

खान अब्दुल गफ्फार खान से मिलने और इंटरव्यू करने का मौका मिला। उस इंटरव्यू की बारे में वे एक बार बता रहे थे किजब उन्होंने सरहदी गांधी को बताया कि उनका परिवार रावलपिंडी से आया है तो वह कुछ भावुक होकर आशीर्वाद वाले दोनों हाथ ऊपर उठा कर बोले,’ठीक हैं न ‘। खान अब्दुल गफ्फार खान 1969 में गांधी जी के जन्म सदी समारोह में भाग लेने के लिए भारत आए थे। त्रिलोक दीप ने 1980 और 1990 के दशकों में जलते पंजाब को बार-बार कवर किया। श्रीमती इंदिरा गांधी की 1984 में हत्या के बाद दिल्ली में भयानक दंगे भड़के। वे तब भी सड़कों पर उतर कर खबरें संकलित कर रहे थे। कहां मिलते हैं त्रिलोक दीप जैसे बेखौफ और सच के साथ खड़े होने वाले पत्रकार।

त्रिलोक दीप प्रयोग धर्मी हैं। भारत के पहले साप्ताहिक हिन्दी अखबार संडे मेल उनकी सोच और विजेन का नतीजा था। संडे मेल में उन्होंने अनेक उत्साही पत्रकारों को अपनी प्रतिभा को दिखाने के भरपूर अवसर दिए। संडे मेल ने भारतीय पत्रकारिता में नए मानक स्थापित किए थे। हिन्दी के पाठक को हर रविवार को एक खबरिया अखबार मिलने लगा था। उसके लिए यह नया अनुभव था। उसमें एक्सक्लूसिव खबरों के साथ-साथ सामयिक विषयों पर लेख,फीचर, इंटरव्यू, यात्रा वृतांत, साहित्य आदि पढ़ने को मिलते थे। संडे मेल कंटेट और डिस्पले के स्तर एक विश्व स्तरीय अखबार था। ये त्रिलोक दीप जी का बेबी था।

त्रिलोक दीप के साथ सत्संग करने का मतलब है कि आप किसी विद्वान की पाठशाला में बैठे हैं। वे ज्ञान का भंडार हैं। पर यह बात उन्हें विशेष नहीं बनाती। उन्हें बाकी से अलग करता है उनकी विनम्रता और सादगी। वे मौजूदा हिन्दी पत्रकारिता के सबसे आदरणीय नामों में से एक हैं। उन्होंने अपने पेशे के साथियों का जो सम्मान हासिल किया है वैसे विरलों को ही नसीब होता है।
उन्हें जन्म दिन पर हार्दिक बधाई और चरण स्पर्श ।
फोटो सरहदी गांधी के साथ हम सबके आदरणीय Trilok Deep जी।

विवेक शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक

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