बुझ गयी पहाड़ की लालटेन, प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल का कोरोना से निधन

गाज़ियाबाद के निजी अस्पताल में थे भर्ती

अविकल उत्त्तराखण्ड

गाज़ियाबाद।…और बुझ गयी पहाड़ की लालटेन। हिंदी के प्रसिद्ध कवि ,लेखक व साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित मंगलेश डबराल का बुधवार को कोरोना से निधन हो गया।  72 वर्षीय मंगलेश डबराल को लगभग 10 दिन पूर्व गाज़ियाबाद वसुंधरा के सेक्टर 4 में स्थित ली क्रेस्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था । बाद में उन्हें एम्स, दिल्ली रैफर किया गया था। एम्स में ही इलाज के दौरान मृत्यु हुई।

Manglesh dabral poet

मूलतः टिहरी गढ़वाल के काफलपनी मंगलेश डबराल की पहाड़ पर लालटेन कविता संग्रह बहुत लोकप्रिय है। इसके अलावा घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है,,कविता संग्रह भी चर्चित रहे हैं।

72 वर्षीय मंगलेश डबराल जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक की जिम्मेदारी भी संभाल चुके थे। उनके कविता संग्रहों के अंग्रेजी, रूसी, जर्मनी आदि भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है। मंगलेश डबराल ने देहरादून में शिक्षा ग्रहण की।

उन्होंने इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की. सन् 1963 में जनसत्ता में साहित्य संपादक का पद संभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद आजकल वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हुए थे। मंगलेश डबराल के पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु। इसके अतिरिक्त इनके दो गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन के साथ ही एक यात्रावृत्त एक बार आयोवा भी प्रकाशित हो चुके हैं।

दिल्ली आकर हिन्दी पैट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद वे भोपाल में मध्यप्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, हिंदी भाषा के प्रख्यात लेखक, कवि और पत्रकार मंगलेश डबराल के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने मंगलेश डबराल के निधन को हिन्दी साहित्य को एक बङी क्षति बताते हुये  दिवंगत आत्मा की शांति व शोक संतप्त परिवार जनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है। 

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